वो दूध के धुले थे, अमृत के नहीं. इसलिए गलतियां उनसे भी हुई. जी हां, गलतियां अपने बापू से भी हुई. लेकिन उनका किरदार इतना बड़ा था कि गोली मारने वाले ने भी पहले पैर छुए, प्रणाम किया. ये बापू का इकबाल था. ये उनके जीवन भर की कमाई थी जिसने एक हत्यारे को भी सामने झुकने पर मजबूर किया.
आत्मा निष्कलंक हो तो सामने वाले पर असर होता है. मेरी सहमति, असहमति मोदी से हो सकती है लेकिन जिस तरह से उन्होंने बापू को याद किया अच्छा लगा. ये अब तक इस राष्ट्र का दुर्भाग्य रहा कि वो एक संस्कारी, एक निष्कलंक, एक निश्छल पिता को धीरे-धीरे विस्मृत करता जा रहा था. मोदी ने बापू को आज दफ्तरों की दीवार से उतारकर फिर से देश को सौंपने की कोशिश की है. ये काम कांग्रेस की पिछली सरकारों को करना चाहिए था.
बहरहाल ये दिन आरोप-प्रत्यारोप का नही है. ये दिन बापू का है. अगर हम दिन में दो पल भी बापू को जी लें तो निश्चित ही हम पहले से कुछ तो बेहतर हो सकते हैं. झाड़ू उठाकर देश ज़रूर साफ करिए लेकिन बापू का स्मरण कर दिल भी साफ कर सकते है आप. आइये, दो पल के लिए निष्कलंक बने.