बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस गुब्बारे पर बैठकर देश और राज्य की राजनीति का जायजा ले रहे थे, उसकी हवा निकल गई है. जिस तरह से उन्होंने बिहार में बीजेपी को सत्ता से बाहर निकाल कर एक धमाका किया और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ज़हर उगला उससे लगा कि वह देश की राजनीति में एक बड़ी ताकत के रूप में उभर रहे हैं.
कांग्रेस ने भी उनके साथ जिस तरह की गर्मजोशी दिखाई और डोरे डाले उससे तो लगा कि बात बन गई है. नीतीश कुमार की योजना साफ थी कि बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस को यह दिखाया जाए कि वह उनके करीबी हैं ताकि वह बिहार को पिछड़ा राज्य घोषित करा सकें और राज्य में वाह वाही लूट सकें.
उनकी मंशा थी कि नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक स्तंभ की तरह खडे़ हों और बिहार में मुस्लिम वोट बैंक पर अपना अधिकार बनाए रख सकें. इसका फायदा यह था कि वह इस तरह से कांग्रेस को अपने पाले में ला सकेंगे. नीतीश कुमार की सोच में कोई खोट नहीं थी. वह एक राजनीतिज्ञ हैं और अपने पत्ते खुद खेलने में यकीन करते हैं.
लेकिन वह एक बात भूल गए कि बिहार में लालू प्रसाद यादव भी हैं जो कांग्रेस को फुसलाने में लगे हुए हैं. उनके सोनिया गांधी से अच्छे संबंध हैं और वह कई बार तो उनके प्रवक्ता के रूप में बोलने तक लग जाते हैं! नीतीश कुमार शायद एक और बात भूल गए. कांग्रेस के पास सरकार चलाने का अनुभव सबसे ज्यादा है. राजनैतिक दांवपेंच में उसे मात देना मुश्किल है. पार्टी भला नीतीश कुमार के डाले दाने को क्यों चुगती, उसने लालू प्रसाद को चुनकर उन्हें जबर्दस्त झटका दिया.
बिहार के किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कैंपस का उद्घाटन होने वाला है, यह खबर अधिकृत रूप से बिहार के मुख्यमंत्री के पास नहीं है. सोनिया गांधी वहां जाएंगी, यह खबर भी उन्हें नहीं दी गई है. यानी पूरी उपेक्षा. अब उनकी समझ में आ रहा है कि यह उनके मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाने की कांग्रेस की एक कोशिश है. उनका तो यहां तक कहना है कि उस कैंपस के लिए ज़मीन का चयन उन्होंने ही किया था और उसकी कीमत भी नहीं ली गई थी. अब उन्हें समझ में आ गया है कि उनके हाथ कुछ नहीं आया.
नीतीश कुमार की सरकार अभी सुरक्षित है और आगे भी सुरक्षित रहेगी. लेकिन लोकसभा चुनाव में वह अपनी जिस ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे वह अब दिखाई नहीं देती. उनके सामने बीजेपी ही नहीं आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन की भी चुनौती है. दो-दो प्रतिद्वंद्वियों से सीधे की लड़ाई में जीतना उनके बस के बाहर है जैसा कि ओपिनियन पोल बता रहे हैं. बात दो टूक है. नीतीश कुमार आगे की लड़ाई में अकेले हैं. एक का साथ उन्होंने खुद छोड़ा तो दूसरा उनके हाथ आया ही नहीं.