प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के नेता तो हैं ही, जाने-माने वकील भी हैं. लेकिन जब उन्होंने कश्मीर में सेना रहने या न रहने के बारे में जनमत संग्रह की बात कही, तो सभी हैरान रह गए. वे देश की राजनीति से हटकर ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं, जिसके बारे में अमूमन कुछ भी नहीं सोचा जाता है.
कश्मीर में सेना दस-बीस वर्षों से नहीं है, बल्कि आजादी के तुरंत बाद से है, जब पाकिस्तान ने हथियारबंद कबायलियों के साथ मिलकर वहां हमला किया था. उसके बाद 1965 में भी पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के इरादे से वहां हमला किया और भारत को बड़े पैमाने पर सेना भेजनी पड़ी. उस समय पाकिस्तान की फौजें कश्मीर के तीन महत्वपूर्ण इलाकों टिथवाल, उड़ी और पुंछ में घुस गई थीं.
कारगिल का प्रकरण किसे याद नहीं है, जब चुपचाप पाकिस्तानी फौजियों ने वहां बंकरों पर कब्जा कर लिया था और सैकड़ों भारतीय सैनिकों को जान से हाथ धो बैठना पड़ा था. आज भी पाकिस्तान अपने पिट्ठुओं के जरिये कश्मीर में घुसपैठ करता रहता है. इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान बनने के समय से ही उसके हुक्मरानों की मंशा कश्मीर को हड़पने की रही है और इस दिशा में वह हमेशा प्रयत्न करता रहता है.
इतना कुछ जानने के बाद प्रशांत भूषण इतनी बड़ी बात कैसे कह गए और अगर वह सेना के उपयोग-दुरुपयोग के बारे में दिल से सोचते हैं तो उन्होंने मणिपुर से सेना कानून (AFSPA) हटाने के बारे में जनमत संग्रह के लिए क्यों नहीं कहा? मणिपुर से यह कानून हटवाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता शर्मिला चानू 13 सालों से भूख हड़ताल कर रही हैं. तो फिर प्रशांत भूषण क्यों नहीं बोले. अगर कश्मीर में भारतीय सेना की उपस्थिति नहीं होती तो पाकिस्तान कब का वहां घुसकर बैठ गया होता.
प्रशांत भूषण ने पाक अधिक़ृत कश्मीर के बारे में यही बात कही होती तो अच्छा लगता. आज़ाद कश्मीर का नाम देकर पाकिस्तान ने कितनी मक्कारी से उस पर कब्जा कर रखा है. वहां के बारे में वे बोल सकते थे. यह सही है कि सेना जहां रहती है, वहां सामान्य कानून पूरी तरह से चल नहीं सकते, लेकिन भारतीय सेना का रिकॉर्ड इतना खराब भी नहीं है कि उसे हटाने के बारे में जनमत संग्रह किया जाए. गलत काम करने वाले कई सैनिकों और अफसरों के खिलाफ वहां कार्रवाई भी हुई है. ऐसा नहीं है कि वहां अंधेर हो रहा है.
अब यही कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी की सफलता से प्रशांत भूषण इतने उत्साहित हो गए हैं कि वे संवेदनशील मुद्दों पर भी अपनी राय देने लगे हैं और वह भी रक्षा संबंधी मामलों में. उन्हें इसका लोभ संवरण करना होगा. उन्हें नहीं भूलना चाहिए कि इस कश्मीर के लिए हमारे हजारों जाबांज सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है.