भारतीय शेयर बाजारों के लिए शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक रहेगा. उस दिन बंबई शेयर बाजार ने एक नया कीर्तिमान बनाया. उस दिन वह दुनिया के दस बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में शुमार हो गया क्योंकि उसका बाजार पूंजीकरण 100 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया. एक और भारतीय स्टॉक एक्सचेंज एनएसई भी बाजार पूंजीकरण के मामले में 11वें नंबर पर जा पहुंचा. इन दोनों एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कंपनियों की बाजार पूंजी पिछले एक साल में तेजी से बढ़ी है. इस साल के शुरू से यह 500 अरब डॉलर तक बढ़ चुका है और इसने दुनिया के बड़े-बड़े एक्सचेंजों जैसे स्विस, ऑस्ट्रियन, कोरियन और यहां तक कि नैस्डैक को भी पीछे छोड़ दिया है.
जनवरी से अक्टूबर तक बीएसई में 32.29 करोड़ शेयरों की खरीद-बिक्री हुई और इस तरह से यह इस वर्ग में दुनिया का आठवां सबसे बड़ा एक्सचेंज बन गया. बीएसई में कुल 5,527 कंपनियां पंजीकृत हैं और यहां 2.66 करोड़ निवेशक भी पंजीकृत हैं. यानी इससे इतने निवेशक जुड़े हुए हैं जितनी यूरोप के कई देशों की आबादी भी नहीं होगी. कुल मिलाकर ये आंकड़े बहुत ही अच्छी छवि पेश करते हैं और ऐसा लगता है कि वाकई इससे लोगों को या निवेशकों को लाभ हो रहा है. लेकिन सच्चाई एकदम ऐसी नहीं है. अब भी हमारा मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग शेयर बाजारों में आई तेजी का लाभ नहीं उठा पा रहा है.
शेयर सूचकांक ने कई बार छलांग लगाई लेकिन देश की जनता का एक वर्ग इसमें आई उछाल का फायदा नहीं उठा पाया. इसकी एक वजह है और यह कि वह इससे दूर रहा. नब्बे के दशक में जब शेयर बाजारों के प्रति जनता में रुझान आया तो उस समय भी सेंसेक्स छलांग लगाते थे और वह पक्की छलांग होती थी. लेकिन हर्षद मेहता कांड के बाद बाजारों के धराशायी होने के बाद से आम आदमी निवेश के इस बहुत बड़े प्लेटफॉर्म से दूर चला गया और सही मायनों में आज तक नहीं लौटा. आज भी शेयर बाजारों में आधा पैसा प्रमोटरों का, 20 प्रतिशत विदेशी संस्थागत निवेशकों का और करीब इतना ही नहीं संस्थागत निवेशकों का है. यानी एक छोटा सा हिस्सा ही आम आदमी का है.
इन आंकड़ों को देखकर कहा जा सकता है कि अगर कभी विदेशी निवेशक बाज़ार छोड़कर चले गए तो इसका बुरा हश्र होगा. बेहतर होगा सरकार आम आदमी और खुदरा निवेशकों को इस ओर आकर्षित करने का प्रयास करे. यह सबके हित में है क्योंकि आज भी भारत में निवेश के साधन कम हैं. लोग रियल एस्टेट और सोने की तरफ जाते हैं जबकि शेयर बाजार निवेश का एक बड़ा विकल्प हो सकता है. सेबी की सख्ती और मीडिया के जागरूक रहने से अब पहले जैसे किसी घोटाले की संभावना नहीं रही. बेशक इनमें थोड़े-बहुत सुधार की जरूरत है लेकिन फिर भी स्थिति बेहतर है. अभी देश के आर्थिक हालात पहले से कहीं अच्छे हैं और नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं. इसलिए इस माहौल में शेयर बाजारों को निवेश का एक बढ़िया विकल्प माना जा सकता है. फिलहाल सेंसेक्स की उड़ान जारी है और इसके आगे जाने की उम्मीद भी है.