इसे आप न्याय की जीत कहेंगे या एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का पटाक्षेप? उस बच्ची आरुषि की हत्या के लिए उसके मां-बाप को दोषी ठहराया जाना दुखद तो है, लेकिन यह एक सही फैसला है.
इस पूरे प्रकरण में मां-बाप की भूमिका शुरू से ही संदेहों के घेरे में रही. जिस तरह से आनन-फानन में हत्या के सबूत मिटाए गए, जिस तरह की दलीलें तलवार दंपति ने दीं और जिस तरह से जनता की राय बनी, उसे देखते हुए यह फैसला तार्किक लगता है. इस मामले में दो निर्दोष व्यक्ति भी फंसते-फंसते रह गए. सीबीआई ने आखिर साबित कर ही दिया कि डॉक्टर राजेश तलवार और नूपुर तलवार ही इस हत्या के दोषी हैं. उसका यह कहना कि घटना के वक्त उस घर में सिर्फ चार ही लोग थे, जिसमें दो की मौत हो गई और दो बचे रह गए, बहुत अहम था. इस मामले में कई और निर्दोष लोगों को फंसाने की कोशिश हुई लेकिन सब बेकार, अदालत ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया.
यह घटना समाज में आई गिरावट और मानवीय संबंधों में ह्रास का एक बड़ा उदाहरण है. इस घटना से पचा चलता है कि सामाजिक मूल्य गिर गए हैं. यह मामला अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागते हुए एक दंपति की दास्तान है, जिसने अपनी इकलौती संतान के पालन-पोषण में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली और उसकी मानवीय जरूरतों का ख्याल नहीं रखा. वे सिर्फ अपनी दुनिया में खोये रहे जिसका खामियाजा उन्होंने भुगता. अपनी संतान की मौत अपने सामने देखना शायद दुनिया का सबसे बड़ा दुख है और उसकी हत्या करना तो अकल्पनीय है. लेकिन यह हुआ. तलवार दंपति ने ऐसा किया. उन्होंने ऐसा करके मानवीय रिश्तों को कलंकित किया और मां-बाप कहलाने का अपना हक भी खो दिया. कोई मां-बाप क्या इतना क्रूर हो सकते हैं कि अपने बच्चे को इस तरह से मार डाले. माना उसने कोई बड़ी गलती की होगी लेकिन क्या उसकी सजा इतनी बड़ी हो सकती है?
बहरहाल तलवार दंपति दोषी करार कर दिए गए. अब उन्हें हत्या की सजा मिलेगी और यह मुकदमा इस लेवल पर खत्म हो जाएगा लेकिन यह हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाएगा जो हमारी पारिवारिक जिम्मेदारियों, बच्चों की बदलती जरूरतों को समझने में चूक और मानवीय रिश्तों से जुड़े हुए हैं.