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Opinion: दिल्ली यूनिवर्सिटी में घमासान

भारत के प्रतिष्ठित दिल्ली यूनविर्सिटी में इस समय घमासान हो रहा है. चार साल के स्नातक कोर्स के खिलाफ बड़ी तादाद में शिक्षक और छात्रजहां लामबंद हो गए हैं वहीं यूजीसी ने दो टूक शब्दों में इस प्रोग्राम को हटा लेने का निर्देश भी दे दिया.

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भारत के प्रतिष्ठित दिल्ली यूनविर्सिटी में इस समय घमासान हो रहा है. चार साल के स्नातक कोर्स के खिलाफ बड़ी तादाद में शिक्षक और छात्र जहां लामबंद हो गए हैं वहीं यूजीसी ने दो टूक शब्दों में इस प्रोग्राम को हटा लेने का निर्देश भी दे दिया.

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मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जिसने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. हाई कोर्ट ने भी इस पर तुरंत सुनवाई करने से इनकार कर दिया. जाहिर है इस प्रोग्राम के समर्थकों के पास अब विकल्प कम हैं. यूनिवर्सिटी के कुल 64 कॉलेजों में से 57 ने इस कोर्स को तिलांजलि देकर तीन साल के कोर्स पर अपनी सहमति भी जता दी है. उन्होंने यूजीसी को इस बाबत सूचित भी कर दिया है. पिछले साल जब यह कोर्से डीयू के मुट्ठी भर प्रोफेसरों द्वारा लाया जा रहा था तो उसका काफी विरोध हुआ था. लेकिन इसे सत्तारूढ़ कांग्रेस का वरदहस्त प्राप्त था और यह विरोध के बावजूद छात्रों पर लाद दिया गया.

कहा गया कि ऐसा कोर्स अमेरिका में प्रचलित है और इससे छात्रों को फायदा होगा. लेकिन कोर्स के विरोधियों द्वारा बताया गया कि पहले साल की पढ़ाई काफी हद तक बचकानी थी. डीयू कोई मामूली यूनिवर्सिटी नहीं है और यहां के कई कॉलेजों में एडमिशन लेने के लिए 90 प्रतिशत अंक भी कम पड़ जाते हैं. यहां देश के सबसे मेधावी छात्र आते हैं और उनके लिए इस तरह की पढ़ाई की व्यवस्था करना हास्यास्पद है. लेकिन बात वहीं खत्म नहीं हो जाती. बिना कोर्स में आमूल चूल बदलाव किए, बिना अनुभवी शिक्षकों के और बिना सबकी रजामंदी के इस तरह के चार वर्षीय पाठ्यक्रम को थोप देना सरासर अनुचित है. भारत के विश्वविद्यालयों में स्वनातक कोर्स में क्या पढ़ाया जाता है यह सभी जानते हैं.

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यह पढ़ाई कोई बहुत कठिन नहीं है और इसके लिए खास किस्म की कोई दक्षता भी नहीं चाहिए. फिर इसके लिए चार साल लगाने का औचित्य क्या है? अगर पढ़ाई कोई खास किस्म की हो या बिल्कुल नई हो या फिर उसे पढ़ने वाले बिल्कुल ही अनाड़ी हो तो फिर कोर्स की अवधि बढ़ाई भी जानी चाहिए. बेहतर शिक्षा के नाम पर चार साल का कोर्स थोप देना निसंदेह गलत है. लेकिन डीयू में ऐसा ही हुआ और अब इसके खिलाफ जोरदार आवाज़ उठते ही वहां के वाइस चांसलर दिनेश सिंह राजनीति पर उतर आए हैं. पहले तो उनकी ओर से इस्तीफे की खबर आई और फिर खामोशी छा गई.

भारतीय शिक्षा प्रणाली में ढेरों खामियां हैं. यहां शिक्षा का स्तर बहुत गिर चुका है और इसके लिए शिक्षक भी कम जिम्मेदार नहीं है. इस तरह के कोर्स लागू करके स्नातक स्तर की शिक्षा का वे क्या भला करना चाहते हैं. अगर इसमें सुधार करना है तो सबसे पहले जरूरी है कि पढ़ाई के घंटे बढ़ाए जाएं. यह सभी जानते हैं कि डीयू में एक साल में कितने दिनों की छुट्टियां होती हैं और कितने दिनों की पढ़ाई. अगर सुधार करना है तो सबसे पहले छुट्टियों की संख्या घटाई जाए. उसके बाद शिक्षकों को रिफ्रेशर कोर्स करवाना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे जंबो जेट उड़ाने वाले पायलटों की होती है. कोर्स में नए से नए विषय और संदर्भ डाले जाएं. बजाय विवाद करने के सबकी कोशिश यह होनी चाहिए कि इसका स्थान दुनिया के 100 सर्वश्रेष्ठ विश्विद्यालयों में हो. अभी तो यह टॉप 200 में भी नहीं है.

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इस विवाद को बढ़ाने से अच्छा है कि डीयू चार साल के इस पचड़े से बाहर हो जाए. तीन साल के कोर्से में कोई कमी नहीं थी. उसे फिर से लागू करके आगे की बढ़िया योजना बनाई जाए ताकि यह दुनिया के बेहतरीन विश्विद्यालयों में शुमार हो. चार साल के कोर्स से तो यह होने वाला नहीं है. इस समय देश के कोने-कोने से आए हुए हजारों छात्र एडमिशन का इंतज़ार शुरू होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. उन्हें निराश करने की बजाय एडमिशन शुरू कर दिया जाए.

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