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Opinion: 'बंटवारे के बाद बंटवारा नहीं होता'

सच ये है कि कश्मीर संयुक्त राष्ट्र संघ क्या भारत और पाकिस्तान के बीच का भी मुद्दा नहीं है. कश्मीर सिर्फ और सिर्फ दिल्ली का मुद्दा है. हल करने के लिए योजनाबद्ध नीति और राजनीतिक संकल्प चाहिए. बाकी बहस बेमानी है क्यूंकि बंटवारे के बाद फिर बंटवारा नहीं होता.

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संयुक्त राष्ट्र आम सभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री मोदी
संयुक्त राष्ट्र आम सभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री मोदी

क्या भाई-भाई के बीच बंटवारे थाने में तय होते हैं? क्या बंटवारे के बाद फिर कोई बंटवारा होता है. बाप की मिल्कियत जब बंट गई, तो क्या थाना और क्या पुलिस? जी हाँ, अगर थाना बेमानी है, तो यूनाइटेड नेशन भी बेमतलब है. ना थर्ड पार्टी, ना सेकेंड पार्टी.

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कश्मीर का मुद्दा तिब्बत से बड़ा नहीं है. अगर तिब्बत से तुलना करें, तो कश्मीर मुद्दा ही नहीं हैं. लेकिन नेहरूवियन सोच और सरकारी अफसरों की लालफीताशाही ने आज कश्मीर को इस्लामाबाद से लेकर न्यूयॉर्क तक मुद्दा बना रखा है.

1949 में ल्हासा (तिब्बत) में चीन के मूल निवासी सिर्फ 400 थे और तिब्बती लगभग 30 हजार. 1992 में चीन के मूल निवासी वहां 400 से बढ़कर 50,000 हो गए, जबकि तिब्बती कोई 90 हजार. चीन ने बेहद सुनियोजित तरीके से तिब्बत की जनसंख्या में ही सेंध लगा दी. इसके अलावा 20 हजार करोड़ रुपये की तिब्बत-चीन रेल प्रोजेक्ट ने दोनों क्षेत्रों को एक पटरी से बांध दिया.

शंघाई के स्कूल प्रोजेक्ट ने भाषा और संस्कृति में बदलाव किए. असर ये हुआ की नई सहस्त्राब्दि के तिब्बत में दलाई लामा ही परदेशी हो गए. चीन ने खुद का लामा भी ढूंढ़ लिया. नतीजा, पाकिस्तान से दुगुना तिब्बत, चीन में समा गया और दुनिया देखती रही.

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सच ये है कि कश्मीर संयुक्त राष्ट्र संघ क्या भारत और पाकिस्तान के बीच का भी मुद्दा नहीं है. कश्मीर सिर्फ और सिर्फ दिल्ली का मुद्दा है. हल करने के लिए योजनाबद्ध नीति और राजनीतिक संकल्प चाहिए. बाकी बहस बेमानी है क्यूंकि बंटवारे के बाद फिर बंटवारा नहीं होता.

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