जो लोग नैतिक मानदंड तय करते हैं या शुचिता की बातें करते हैं उनसे उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं. लगता है कि वे बेहतरीन आचरण और उच्च विचारों से लबरेज होंगे. लेकिन वास्तविक जिंदगी में जब कुछ इसके ठीक विपरीत घटता है तो ज़ोर की चोट लगती है और फिर बड़ी तीखी प्रतिक्रिया होती है. बात तहलका के संपादक रहे तरुण तेजपाल की है जो इस समय मुंह छुपाते फिर रहे हैं. उनका दोष सिर्फ इतना ही नहीं है कि उन्होंने अपनी एक जूनियर सहयोगी जो उनकी बेटी की भी मित्र है, के साथ कुत्सित व्यवहार किया बल्कि कुछ समय पहले तक सारी दुनिया को नैतिकता और शुचिता का पाठ पढ़ाते रहे. उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कई भ्रष्टाचारियों का पर्दाफाश किया और हमेशा गर्व से अपने को ऊंचा बताया. लेकिन इस अहंकार ने उन्हें सबसे ऊपर समझने की आदत डाल दी. और फिर उन्होंने जो किया उससे सारी पत्रकार बिरादरी शर्मसार हो गई. हालत यह है कि वह पुलिस से छिपते फिर रहे और उनके बचाव में उनके वकील तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं.
तरुण तेजपाल ने पहले तो अपनी गलती के लिए माफी मांगी लेकिन बाद में शायद वकीलों के कहने पर मुकर गए और उंगलियां पीड़िता की ओर उठा दी. उन्होंने यह नहीं सोचा कि जनता की अदालत कानून की अदालतों की तरह काम नहीं करतीं और वहां फर्जी दलीलों को जगह नहीं मिल पाती. इसलिए वह तुरंत ही लोगों की नज़रों में बहुत नीचे गिर गए. अब कानून की अदालत में उन्हें चाहे कुछ भी सजा मिले, जनता की अदालत में वे दंड के पात्र हो चुके हैं और यह उन्हें जीवन भर सताएगा. उनके साथी-संगी सभी उनसे दूर हो गए हैं. और कल कोई उनके बारे में बोलने वाला भी नहीं होगा.
तरुण तेजपाल के पक्ष और विपक्ष में तरह-तरह के तर्क हैं, लेकिन उनका दोष इसलिए बड़ा है कि वे उच्च सामाजिक मूल्यों और नैतिकता की ही बातें करते थे और उस पर ही भाषण देते थे. जो लोग ऐसी बातें करते हैं और फिर खुद शर्मनाक हरकतें करते हैं उनके लिए आईपीसी में कोई अतिरिक्त सजा का बेशक प्रावधान नहीं है लेकिन समाज के सामने उठे सिर का नीचे झुक जाना बहुत बड़ी सजा है.