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Opinion: अंकल सैम की 'दूरदर्शी' निगाहें

अंकल सैम यानी अमेरिका सारी दुनिया पर निगाहें रखता है, यह कोई नया खुलासा नहीं है लेकिन यह कि 2010 में उसने बीजेपी की निगरानी की या यूं कहें कि जासूसी की. लेकिन हैरत की बात है कि उसने मिस्र की मुस्लिम ब्रदरहुड की भी साथ-साथ निगरानी का काम किया.

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अंकल सैम यानी अमेरिका सारी दुनिया पर निगाहें रखता है, यह कोई नया खुलासा नहीं है लेकिन यह कि 2010 में उसने बीजेपी की निगरानी की या यूं कहें कि जासूसी की. लेकिन हैरत की बात है कि उसने मिस्र की मुस्लिम ब्रदरहुड की भी साथ-साथ निगरानी का काम किया.

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दुनिया भर में कुल पांच राजनीतिक दलों पर उसके जासूसी संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) ने निगाहें रखी. अपने प्रतिद्वंद्वियों या दुश्मनों की जासूसी करना तो जायज है और ज्यादातर देश ऐसा करते हैं लेकिन यह तो ऐसा मामला है जिसके बारे में सुनकर हैरानी होती है.

एनएसए को अमेरिका में जासूसी करने के लिए असीमित अधिकार मिले हुए हैं और यह एजेंसी ऐसा करती रहती है. वह दर्जनों नहीं सैकड़ों की तादाद में संगठनों और देशों की जासूसी करती रहती है. इतना ही नहीं एनएसए वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, यूरोपीय यूनियन और इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी के कार्यकलापों पर भी नज़र रखता है. यानी वह हर उस संगठन या देश की निगरानी करता है जिससे उसे कुछ भी साबिका हो.

डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस ने हाल में बताया कि 2013 में अमेरिकी सरकार ने 90,000 विदेशी नागरिकों और संगठनों की जासूसी की. यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से ही अमेरिकी एजेंसियां दूसरे मुल्क के लोगों और संगठनों की जासूसी करती रहीं हैं. उन्हें सरकार की ओर से बहुत अधिकार मिले हुए हैं. 2008 में तो इसके लिए बकायदा एक कानून भी बना दिया गया. इसके बाद से तो जैसे कि जासूसी की बाढ़ आ गई है.

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इसका ही नतीजा है कि इस तरह से खुले आम दूसरों की जासूसी का भयावह काम हो रहा है. अब सवाल है कि दूसरों की जासूसी करके अमेरिकी अधिकारी क्या उन मानव अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं जिनकी वे हमेशा दुहाई देते रहते हैं? सवाल यह भी है कि क्या वे उन सूचनाओं का दुरुपयोग तो नहीं कर रहे हैं?

तीसरा बड़ा सवाल है कि इस बात की क्या गारंटी है कि उन सूचनाओं को वह दूसरों तक नहीं पहुंचाते होंगे? यह एक निहायत ही अहंकारी और साम्राज्यवादी कदम है जो अमेरिका उठाता रहता है. निर्विवाद रूप से दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत बनने का उसका सपना क्या इस तरह के कदमों से पूरा होगा? अपने स्वार्थों की खातिर अमेरिका ने इस तरह के न जाने कितने कदम उठाए हैं.

इनसे तो यही संदेह होता है कि वह एक लोकतांत्रिक देश नहीं बल्कि एक ऐसा देश है जहां जनता की नहीं बल्कि पेंटागन या सीआईए अथवा एनएसए जैसी जासूसी एजेंसियों की चलती है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का वहां इस तरह से पीछे चले जाना भयावह स्थिति है जो दुनिया के हर देश की स्वतंत्रता को खतरे में डालती है. अब समय आ गया है कि दुनिया के तमाम देश अंकल सैम की इस ताक झांक के तरीके पर ऐतराज जताएं.

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