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Opinion: असम में फिर खून खराबा, कौन जिम्मेदार?

असम एक बार फिर गलत कारणों से चर्चा में है. वहां बोडो उग्रवादियों ने 65 आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. कहते हैं कि उग्रवादी गिरोह नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के एक अलग हुए गुट ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

असम एक बार फिर गलत कारणों से चर्चा में है. वहां बोडो उग्रवादियों ने 65 आदिवासियों की गोली मारकर हत्या कर दी जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. कहते हैं कि उग्रवादी गिरोह नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के एक अलग हुए गुट ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया.

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बताया जाता है कि उनके दो लोग सेना-पुलिस से झड़प में मारे गए थे. उन्होंने इसका बदला लेने के लिए और सरकार को चेतावनी देने के लिए यह कत्लेआम किया है. वह इलाका जहां 23 लोगों की हत्याएं हुईं, भूटान और अरूणाचल प्रदेश की सीमा के पास है. यह बहुत निर्जन इलाका है और यहां झारखंड से आकर बसे हुए आदिवासी ज्यादा हैं. यहां किसी की हत्या करना बहुत आसान है क्योंकि यह जगह सुरक्षा बलों के घेरे से दूर है. इसका ही नाजायज फायदा उठाकर उन हत्यारों ने निर्दोष लोगों की हत्या कर दी. उन्होंने तालिबानियों की ही तरह छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला.

असम भारत का सबसे ज्यादा संवेदनशील राज्य है. वहां हमेशा कत्लेआम होते रहते हैं. भारत के सबसे बड़े उग्रवादी गिरोहों में से एक, उल्फा भी वहां कई दशकों से सक्रिय रहा है. वहां से साम्प्रदायिक हिंसा, जातीय हिंसा और अन्य तरह की हिंसा की खबरें आती रहती हैं लेकिन राज्य सरकार और केन्द्र ने कभी भी इनसे निबटने के लिए कोई ठोस और दूरगामी योजना नहीं बनाई. वोट की राजनीति ने उनके हाथ बांधे रखे.

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बांग्लादेश से घुसपैठ के कारण यहां अक्सर खून-खराबा होता रहता है. लेकिन बोडो उग्रवादियों ने तो हाल के वर्षों में जबर्दस्त हिंसा की. उत्तरी असम में रहने वाले लोग बोडो कहलाते हैं. बोडो का अर्थ है बड़ा. एक समय वे असम में वे दबे-कुचले निवासी थे और उनकी जमीन पर बाहर से आकर लोग बसते जा रहे थे जिसके प्रतिकार में वे छिटपुट हिंसा करते थे.

बाद में उन्होंने बोडोलैंड की आवाज उठाई जिसके समाधान के लिए सरकार ने बोडोलैंड टेरिटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट्स बनाया. लेकिन इससे भी बात नहीं बनी, क्योंकि इससे वहां के लोगों को कोई लाभ नहीं हुआ. विदेशों से हथियार लाकर वहां के उग्रवादियों ने अपना गिरोह बना लिया. बाद में उसके भी दो टुकड़े हो गए और एक गुट अब खून-खराबा कर रहा है.

असम के बारे में केन्द्र सरकार को एक विशेषज्ञ समिति बनाकर विचार करना होगा कि आखिर कैसे इस सुरम्य और सुंदर राज्य को हिंसामुक्त किया जा सकता है. यहां कई जातियों, धर्मों, गुटों और निवासियों के बीच चली आ रही दुश्मनी को खत्म करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. सिर्फ सेना या सुरक्षा बल भेज देने या कुछ उग्रवादियों को पकड़ लेने से कुछ नहीं होगा.

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असम बेहद संवेदनशील राज्य है और उसकी समस्याएं भारत के अन्य राज्यों से अलग हैं. इसलिए वहां की समस्या का समाधान अलग तरीके से ही हो सकता है. यह इतना आसान नहीं है और इसके लिए गंभीरता से काम करना होगा.

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