ऐसा लगता है कि विपक्ष ने मोदी सरकार को सांप्रदायिकता के मुद्दे पर घेरने की तैयारी कर ली है. इस मुद्दे पर सबसे पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार को लोकसभा में घेरा. इसके बाद मंगलवार को सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि मोदी राज में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी है. कुछ ऐसे ही आरोप पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी लगाए. उन्होंने कहा कि बीजेपी सूबे का सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ रही है. इन सबके बीच बुधवार को लोकसभा में सांप्रदायिक हिंसा पर बहस होगी.
खबर है कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में दोनों ने सांप्रदायिक हिंसा पर चर्चा की मांग की. सूत्रों के मुताबिक सुमित्रा महाजन ने इन नेताओं की मांग मान ली है और आज इस पर चर्चा संभव है.
मोदी सरकार को अभी दो महीने से कुछ ही ज्यादा वक्त बीता. लेकिन कांग्रेस उसे कटघरे में खड़ा करने का कोई मौका जाने नहीं देना चाहती. बीजेपी पर वार का हथियार पुराना है. यानी सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप. लेकिन अब इस हथियार पर शान कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चढ़ा रहा है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केरल के तिरुअनंतपुरम में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, 'नई सरकार बनने के 11 हफ्तों के अंदर देश में खासकर यूपी और महाराष्ट्र में सांप्रदायिक हिंसा के मामले तेजी से बढ़े हैं. बेहद कम समय के अंदर सांप्रदायिक हिंसा के 600 मामले यूपी, महाराष्ट्र समेत कुछ अन्य राज्यों में सामने आए हैं.'
इससे पहले राहुल गांधी भी संसद में सांप्रदायिकता मुद्दा उठा चुके हैं. कांग्रेस लोकसभा में नेता विपक्ष का पद भले ना हासिल कर सकी हो पर कोशिश यही है कि जनता के बीच दमदार विपक्ष की भूमिका निभाने का संदेश जाए. यही वजह है कि सांप्रदायिकता पर चर्चा की मांग को राहुल लोकसभा में सांसदों संग वेल में उतर आए.
हालत तो ये है कि कभी एनडीए की सहयोगी रह चुकीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी मोदी सरकार पर सांप्रदायिक हिंसा के आरोप मढ़ रही हैं. ममता ने बिना बीजेपी और मोदी का नाम लिए इशारा किया कि राज्य में जन्माष्टमी के दौरान सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है.
बीजेपी पर सांप्रदायिकता फैलाने का आरोप नया नहीं हैं. ममता हों या फिर कांग्रेस और उसके सहयोगी दल. सभी पहले बीजेपी को सांप्रदायिक पार्टी करार देकर उसे सत्ता से दूर रखने की कोशिशें करते थे. वो खास कर मोदी को सांप्रदायिकता ब्रांड का अगुवा करार देते रहते थे. अब जब मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तो कांग्रेस की कोशिश है कि वो जल्द से जल्द अपने आरोपों पर पुष्टि की मुहर लगा दें. खास कर 4 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले.
शायद संसद में सांप्रदायिकता पर बहस के जरिए कांग्रेस देश की जनता के बीच ऐसा संदेश देना चाहती है कि वो जो कह रही थी वो अंजाम की ओर है. लेकिन असल सवाल ये है कि क्या कांग्रेस जनता को भी ये यकीन दिला पाएगी कि देश में हो रही हिंसा के पीछे मोदी सरकार ही है. आखिर बहुमत वाली सरकार को देश का सौहार्द बिगाड़ने की जरूरत क्यों है इसका बेहतर जवाब कांग्रेस और आरोप लगाने वाले दल ही दे सकते हैं.