मौका था समाजवादी विचारधारा के नेता मधु लिमए की 95वीं जयंती का और जगह थी नई दिल्ली का वी पी हाउस. लेकिन मंच पर मधु लिमए को श्रद्धांजलि देने के बहाने जो नेता जुटे उन्हें देखकर यह बात साफ थी कि यह लोग श्रद्धांजलि देने से ज्यादा अपने भविष्य की चिंता की वजह से यहां जुटे हैं.
चिंता इस बात की कि अब आगे बीजेपी से लड़ाई किस तरह से लड़ी जाए. कांग्रेस लेफ्ट और जनता परिवार के साथी रहे नेताओं ने साथ मिलकर इस बात पर माथापच्ची की कि राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्षी एकता दिखाई जाए और विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार खड़ा किया जाए. मंच पर बैठे नेताओं को देखकर आप समझ सकते हैं कि ये सब के सब वह नेता हैं जिनका राजनीतिक भविष्य मोदी की वजह से खतरे में पड़ गया है, चाहे वह कांग्रेस के दिग्विजय सिंह हो जिनसे हाल में ही कर्नाटक और गोवा का प्रभार छीन लिया गया या लेफ्ट के नेता सीताराम येचुरी, राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह, एनसीपी के डीपी त्रिपाठी, सीपीआई के डी राजा और अतुल अंजान और जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव, ये सभी ऐसे नेता हैं जिनके सितारे आजकल गर्दिश में हैं.
इन विपक्षी दलों की कोशिश है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले इस तरह की एकजुटता बनाई जाए कि विपक्ष राष्ट्रपति पद के लिए अपना साझा उम्मीदवार खड़ा कर सके. इस मौके पर बोलते हुए सीताराम येचुरी ने कहा कि देश में इस वक्त सांप्रदायिक ताकतों का बोलबाला हो गया है और माहौल ऐसा बन गया है जिससे लगता है कि विकास का मतलब सांप्रदायिक होना ही है. येचुरी ने कहा कि ऐसे वक्त में यह बेहद जरूरी है कि कम से कम राष्ट्रपति भवन में एक ऐसा राष्ट्रपति हो जिसकी सोच सेकुलर हो.
शरद यादव का नाम राष्ट्रपति पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के तौर पर चर्चा में है. शरद यादव खुद तो इसके बारे में कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन मधु लिमए के जन्म दिवस के मौके पर शरद यादव ने यह कहा कि इस वक्त संविधान को बदल देने की बात हो रही है, इसीलिए विपक्ष को आपसी भेदभाव भूलकर साथ आना बेहद जरूरी है ताकि ऐसा राष्ट्रपति चुना जा सके जो संविधान की रक्षा कर सके.
लेकिन विपक्षी दलों की एकता कितनी आगे बढ़ पाती है, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है. उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले भी जनता परिवार के नेता इसी तरह से साफ जुटे थे और मुलायम सिंह यादव को अपना अभिभावक बना कर बीजेपी से मोर्चा लेने की बात कर रहे थे. लेकिन जनता परिवार साथ आने से पहले ही बिखर गया था.