कांग्रेस में संगठन में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. दिग्विजय सिंह से गोवा और कर्नाटक के प्रभार छीना लिया गया है. उनकी जगह के सी वेणुगोपाल को कर्नाटक का प्रभारी बनाया गया है. वहीं चेल्ला कुमार को गोवा का प्रभार दिया गया है. कर्नाटक के प्रभार के अलावा के सी वेणुगोपाल को पार्टी में महासचिव का पद भी दिया गया है.
गौरतलब है कि गोवा के चुनावी नतीजों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई थी. ऐसे में दिग्विजय सिंह की भूमिका पर सवाल उठ रहे थे. वहीं सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष का चुनाव अक्टूबर में होगा. राहुल गांधी चुनाव के ज़रिए ही अध्यक्ष बनने की इच्छा रखते हैं. ऐसे में क़यास यही हैं कि, राहुल अध्यक्ष का पद अक्टूबर में ही संभालेंगे. हालांकि, कुछ सीनियर नेताओं का मानना है कि, राहुल पहले अध्यक्ष नोमिनेट हो जाएं, फिर अक्टूबर में होने वाला चुनाव भी लड़ लें. लेकिन पार्टी संगठन में बदलाव अगले कुछ दिनों में होते रहेंगे.
अब मधुसूदन मिस्त्री भी नहीं रहेंगे महासचिव
हाल ही में अशोक गहलोत को महासचिव बनाकर उनको गुजरात का प्रभार सौंपा गया है. इसके साथ ही 4 नए सचिव बनाकर उनको गहलोत के साथ जोड़ा गया है. इसी तरह एक महासचिव मधुसूदन मिस्त्री को पार्टी संगठन में चुनाव कराने वाली समिति का हिस्सा बना दिया गया है, जिससे उनकी महासचिव पद से छुट्टी हो गई. सूत्रों की मानें तो जल्दी ही हरियाणा के प्रभारी महासचिव कमलनाथ को मध्य प्रदेश भेजा जा सकता है, इससे एक और महासचिव का पद खाली हो जाएगा. ओडिशा के प्रभारी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने पंचायत चुनावों में हार के बाद इस्तीफा दे दिया था, तब उनको अगले आदेश तक काम करते रहने को कह दिया गया था. इसके साथ ही मुम्बई नगर पालिका चुनावों को लेकर नाराज़ हुए राजस्थान के प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत भी अपने इस्तीफे पर अड़े हुए हैं.
आहिस्ता-आहिस्ता होगा फेरबदल
कुल मिलाकर एक झटके से बड़ा बदलाव करने की बजाय कांग्रेस आलाकमान आहिस्ता आहिस्ता संगठन में फेरबदल की प्रक्रिया शुरू कर चुका है. सुशील कुमार शिंदे, जितेंद्र सिंह, ज्योतिरादित्य सिन्धिया सरीखे नेताओं को महासचिव बनाया जा सकता है. इसके अलावा राहुल के करीबी युवा नेताओं को सचिव बनाया जाएगा. एक बात का संदेश जरूर दिया जाएगा कि, वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर युवाओं की ही टीम नहीं बनाई जा रही है, बल्कि वरिष्ठ और युवाओं का तालमेल बैठाया जा रहा है.
दरअसल, एक साथ बड़ा बदलाव करने से संगठन से बाहर किये जाने वाले नेता नाराज़ हो सकते हैं. इसलिए एक झटके में बदलाव नहीं किये जा रहे. इसके अलावा कई एडजस्टमेंट भी किये जा रहे हैं, जिससे नेता नाराज़ भी ना हों. ऐसे में अगले कुछ दिनों में कांग्रेस संगठन में बदलाव नज़र आने लगेगा, जिसकी सुगबुगाहट 2014 लोकसभा चुनावों में हार के बाद से चल रही है.