न्यायिक सक्रियता को लेकर आलोचना के बीच उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्याय के हित में कोई भी आदेश सुनाने के लिए उसके पास असीमित असाधारण संवैधानिक शक्तियां हैं और भले ही ऐसा करने के लिए वैधानिक प्रावधानों से बाहर निकलना पड़े वह निकल सकता है.
न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की पीठ ने यह व्यवस्था ए सुभाष बाबू नाम के एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए (पत्नी को प्रताड़ित करना) के तहत आरोपों को बहाल करते हुए दी.
शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि पहली शादी के कायम रहने के दौरान आरोपी की दूसरी महिला से शादी अमान्य थी इसलिए दूसरी पत्नी आईपीसी की धारा 498 ए के तहत शिकायत नहीं दर्ज करा सकती.
न्यायमूर्ति पांचाल ने अपने आदेश में लिखा, ‘अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अधिकार क्षेत्र है. यह अवशिष्ट शक्ति है. यह असाधारण है. अन्याय को खत्म करने के दौरान उसकी शक्ति की सीमा अनंत है. साथ ही अनुच्छेद 136 के तहत उच्चतम न्यायालय शक्तियों का इस्तेमाल किसी पक्षकार के समर्थन में स्वत: संज्ञान लेकर भी कर सकती है, बशर्ते वह संतुष्ट हो कि इस शक्ति का इस्तेमाल करने के लिए अकाट्य आधार हो.’
संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत उच्चतम न्ययालय किसी व्यक्ति को उच्च न्यायालय या किसी निचली अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश या फैसले के खिलाफ अपील करने की अनुमति दे सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि द्विविवाह के मामले में मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट के आधार पर भी अपराध का संज्ञान ले सकता है और यह आवश्यक नहीं है कि पीड़ित या परिवार के किसी अन्य सदस्य से सीधी शिकायत मिलनी चाहिए.
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