भारत की आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों को कार्बन उत्सर्जन करने वाले तत्वों और गोबर आधारित ईंधन पर रसोई से जुड़ी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर रहना पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन की ‘सभी के लिए वहनीय ऊर्जा’ शीर्षक वाली रिपोर्ट के अनुसार, ‘स्वच्छ रसोई सुविधा की कमी वाली दुनिया के आबादी का दो तिहाई हिस्सा भारत, चीन और बांग्लादेश में निवास करता है. भारत इस सूची में सबसे ऊपर है जहां बड़ी आबादी के पास रसोई के लिए स्वच्छ ईंधन का अभाव है.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को पर्याप्त, वहनीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोत उपलब्ध कराने की महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार, ‘मोटे तौर पर 85 प्रतिशत परिवार रसोई के लिए पारंपरिक ईंधन के स्रोत पर निर्भर हैं और 45 प्रतिशत के पास बिजली नहीं है.’
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, कई गरीब ग्रामीण समुदायों में जैव ईंधन अभी भी ईंधन का सबसे व्यवहारिक माध्यम बना हुआ है. खाना बनाने के बेहतर स्टोव से घर के अंदर धुंआ के स्तर को काफी कम किया जा सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘ठोस ईंधन को जलाने से घर के अंदर काफी उच्च स्तर का वायु प्रदूषण होता है.’ चूंकी खाना साल भर हर दिन पकाया जाता है, इसलिए ठोस ईंधन का उपयोग करने वाले धुंए के छोटे कणों के प्रभाव में रहते हैं जो कई बार स्वीकार्य वार्षिक सीमा से अधिक होता है.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘जैव ईंधन जलाने का स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह न्यूनतम मानव जीवन स्तर हासिल करने के मार्ग में भी बाधक माना जाता है.’ रिपोर्ट में कहा गया है कि खाना पकाने के बेहतर स्टोव से घर के अंदर धुंए के स्तर को कम किया जा सकता है.