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सफदरजंग अस्पताल में जिंदगी को तरसते नवजात बच्चे

देश का नामी सफदरजंग अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में है. पिछले पांच साल में यहां 8 हजार दो सौ तीन बच्चों की मौत हुई है. यानी की हर रोज 4 बच्चों की मौत. इनमें से ज्यादातर या तो नवजात हैं या फिर एक महीने के बच्चे.

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सफदरजंग अस्पताल
सफदरजंग अस्पताल

देश का नामी सफदरजंग अस्पताल एक बार फिर सवालों के घेरे में है. पिछले पांच साल में यहां 8 हजार दो सौ तीन बच्चों की मौत हुई है. यानी की हर रोज 4 बच्चों की मौत. इनमें से ज्यादातर या तो नवजात हैं या फिर एक महीने के बच्चे.

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ये आंकड़े आपकों हिला सकते है और चौंकाने वाली बात ये है कि खुद अस्पताल प्रशासन ने आरटीआई में ये सच्चाई कुबूल की है.

अब हम आपकों साल दर साल के आकड़े बताते है कि किस तरह अस्पतालों में मासूमों की चीख दफन होती है.

1. साल 2008 में PEDIATRIC वार्ड यानी की बाल चिकित्सा विभाग में एक महीने से पांच महीने तक के 1179 बच्चों की मौत होती है और नर्सरी में 663 बच्चों की सांसे रुक जाती है.

2. साल 2009 में PEDIATRIC वार्ड में 1143 बच्चों की मौत होती है तो नवजात बच्चों के लिए बनी नर्सरी में 625 मासूम दुनिया देखने से पहले ही आंखें मूंद लेते है.

3. 2010 में भी PEDIATRIC वार्ड मे 1079 चिराग बुझ जाते है तो नर्सरी में 602 मासूम जिन्दगी का साथ छोड़ देते है.

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4. साल 2011 में बाल चिकित्सा वार्ड मे 1034 बच्चों की मौत होती है तो नर्सरी में 654 मासूमों की.

5. साल 2012 में सितंबर तक 789 मौतें होती है तो नर्सरी में 435 बच्चों को बचाने में अस्पताल नाकामयाब रहता है.

देश के सबसे बड़े अस्पताल मे से एक सफदरजंग मे सुविधाओं का बहुत अभाव है. यहां सिर्फ दो न्यूबोर्न नर्सरी है जिसमें 50-50 बेड है और इनमें से 10-10 बेड इंटेंसिव केयर के लिए है.

अब सवाल यह उठता है कि जिस अस्पताल में 24 से 25 हजार डिलिवरी हर साल होती है वहां के लिए ये मुट्ठी भर सुविधाएं काफी है क्या. यानी कि CRITICAL CARE की कमी की वजह से मासूमों की मौत होती है.

सफदरजंग अस्पताल की बदइंतजामी और उस पर से डॉक्टरों की लापरवाही इसकी सबसे बड़ी वजह है. आरटीआई एक्टिविस्ट राजहंस बंसल जो आरोप लगा रहे है वो और गंभीर है.

आरटीआई एक्टिविस्ट राजहंस बंसल ने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल की वजह से बच्चो की मौत होती है. मां-बाप से बिना इजाजत के अस्पताल क्लीनिकल ट्रायल कर रहा है.

क्लीनिकल ट्रायल यानी की बच्चों पर अलग-अलग दवाईयों का एक्सपेरिमेंट करने का आरोप है. और आरोप है कि इसी एक्सपेरिमेंट की बलिचढ़ रहे है मासूम बच्चे. हालांकि अस्पताल नियमों के तहत दो क्लीनिकल ट्रायल करने की बात आरटीआई में मान रहा है.

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उसका कहना है कि पिछले पांच साल में 2056 बच्चों पर ये ट्रायल हुए है लेकिन उनमें से किसी की मौत नहीं हुई. अब सवाल उठता है कि अगर ऐसा नहीं है तो इतने बड़े अस्पताल में इतनी मौते क्यों.

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