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बोफोर्स मामले में CBI को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाना होगा: संसदीय उप समिति

सूत्रों के मुताबिक कमेटी ने माना है कि इससे जुड़े तमाम रिकॉर्ड और दस्तावेजों को संभालकर रखने में कोताही बरती गई. दस्तावेज मंगवाने पर बार-बार यही बहाना दिया कि मामला कोर्ट के विचाराधीन है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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बोफोर्स सौदे का करीब 27 साल तक अध्ययन करने के बाद एक संसदीय समिति ने हॉविट्जर तोप की खरीद से संबंधित मामलों में सीबीआई को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने पर जोर दिया है.  बीजेडी सांसद भतृहरि महताब की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय पब्लिक अकाउंट्स कमेटी (पीएसी) की सब कमेटी (संसदीय उप समिति) ने बोफोर्स पर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है. अगले सत्र में ये रिपोर्ट संसद में टेबल भी कर दी जाएगी.

सूत्रों के मुताबिक कमेटी ने माना है कि इससे जुड़े तमाम रिकॉर्ड और दस्तावेजों को संभालकर रखने में कोताही बरती गई. दस्तावेज मंगवाने पर बार-बार यही बहाना दिया कि मामला कोर्ट के विचाराधीन है. कमेटी ने पाया कि पूरे सिस्टम ने ढिलाई बरती और राजनीतिक ड्रामेबाजी ही चलती रही. कमेटी ने कहा है कि मंत्रालय एक ऐसा सिस्टम बनाए, जिसके तहत ऑडिट को लेकर आपत्तियां होने पर एक तय समय सीमा में जांच का प्रावधन हो.

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पीएसी ने इस बात पर भी दुख जताया कि पूरे घटनाक्रम में जांच से जुड़ी संस्थाओं और लोगों ने समझौते किए. कमेटी ने कहा कि जांच से जुड़ी ऐसी तमाम संस्थाओं को राजनीति से बाहर निकलकर अपनी जिम्मेदारी बेहतर तरीके से संभालनी चाहिए. कमेटी ने पाया कि सरकार के तमाम अंगों के बीच तालमेल की कमी थी. साथ ही जांच एजेंसियों द्वारा साक्ष्य नहीं जुटाने पर भी गहरी चिंता जताई. कमेटी ने पाया कि एक्शन टेकेन नोट्स भेजने में भी मंत्रालयों ने बहुत देर की है.

पीएसी सब कमेटी ने भले ही रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया हो लेकिन पीएसी की मुख्य कमेटी के अध्यक्ष लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल के नेता मालिकाअर्जुन खड़गे हैं. अब देखना है कि वो पीएसी के अध्यक्ष के नाते बोफ़ोर्स मामले पर सब कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं या नहीं.  

कुछ इसी तरह के हालात 2011 में 2G स्पेक्ट्रम घोटाले पर पीएसी की कमेटी के सामने आए थे. तब कमेटी के अध्यक्ष मुरली मनहोर जोशी चाहते थे कि रिपोर्ट को कमेटी स्वीकार करे लेकिन तब कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी और अन्य यूपीए सरकार के समर्थक दलों ने संख्या बल के दम पर रिपोर्ट का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पास कर दिया था. एक कमेटी के ज़्यादातर सदस्य रिपोर्ट से सहमत नहीं होने पर मामला लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के पास गया था. तब मीरा कुमार ने रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया था और रिपोर्ट को फिर से तैयार करने के आदेश दिए थे.

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सूत्रों के अनुसार ख़बर है अगर मल्लिकाअर्जुन खड़गे कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं, तो बीजेपी संख्याबल के आधार पर कमेटी में रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए प्रस्ताव को पास कर मामले लोकसभा स्पीकर के पास लेकर जाने की तैयारी में है.

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