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कश्मीर में पाक आर्मी फैलाती है दहशतगर्दी, सबूत आया सामने

पाकिस्तान और वहां की आर्मी इस आरोप से भले पल्ला झाड़ते रहें लेकिन यह बात 100 प्रतिशत सच है कि भारत खासकर जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दी के पीछे पाकिस्तान और वहां की सेना का हाथ है. हालिया वीडियो इस बात का सबूत है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर रॉयटर्स से
प्रतीकात्मक तस्वीर रॉयटर्स से

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जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान और उसकी सेना की ओर से फैलाए जा रहे आतंकवाद का एक और सबूत सामने आया है. ये सबूत किसी और ने नहीं बल्कि खुद पाकिस्तान की सेना ने दिए हैं. पाकिस्तान की सेना की तरफ से जारी देशभक्ति के कई वीडियो में से एक कश्मीरी आतंकियों के हैं. इस वीडियो में आज़ादी के नारे लगाते पत्थरबाज और हाथों में बंदूक लिए आतंकियों की तस्वीर है.  पाकिस्तान सेना के पब्लिक रिलेशन विभाग (आईएसपीआर) ने ये वीडियो सुरक्षा और शहीद दिवस के अवसर पर जारी किए हैं.

पाकिस्तान में पनाह लिए लश्कर-ए-तोयबा, जमात उद दावा और जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की मदद से कश्मीर में आतंकी भेज कर आतंक फैलाते रहे हैं. पाक आर्मी ने राष्ट्रवाद के नाम बनाए गए वीडियो में इन आतंवादियों को शामिल कर इसका सबूत भी दे दिया है कि किस तरह इन आतंकवादियों को पाक आर्मी की सरपरस्ती हासिल है. पाकिस्तान और पाकिस्तानी सेना को देशभक्ति वाले वीडियो बनाने का हक़ है लेकिन कश्मीर में आतंकी भेज कर आतंकवाद फैलाना और फिर उसका इस्तेमाल पाकिस्तान के खोखले राष्ट्रवाद को महिमामंडित करने के लिए करना एक आतंकी देश ही कर सकता है.

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जम्मू कश्मीर में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद भी घाटी के युवा आतंक की राह पर जा रहे हैं लेकिन इन भर्तियों का लिंक बुरहान वानी से जरूर है. 8 जुलाई 2016 को बुरहान की हत्या के बाद 35 से ज्यादा युवाओं ने आतंकी संगठन हिज्बुल का रुख किया है और इनकी भर्ती के पीछे नया चलन देखने को मिला है.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक बुरहान एनकाउंटर के बाद हिज्बुल में शामिल हुए इन युवाओं के बारे में उनके परिजनों, मित्रों से जुड़ी जानकारी जुटाने पर यह पता चलता है कि वह किसी ने किसी रूप में बुरहान की मौत प्रभावित थे. अखबार के हाथ लगी रिपोर्ट में कहा गया कि इन युवाओं को बुरहान की मौत ने हिज्बुल में दाखिल होने के लिए प्रभावित किया.

सुरक्षाबलों के लिए यह आतंकी कोई चुनौती बन पाते इससे पहले ही ज्यादातर का एनकाउंटर कर दिया गया है. बावजूद इसके अब भी नए युवा हिज्बुल में शामिल हो रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस ट्रेंड को जल्द से जल्द खत्म किए जाने की जरूरत है.

आतंकियों की भर्ती

घाटी में इससे पहले आतंक की राह चुनने वाले युवाओं की भर्ती गुपचुप तरीके से होती थी. कम बार ही ऐसा होता था कि नए भर्ती हुए युवाओं को कोई बड़ा मिशन दिया जाता था. भर्ती के बाद उन्हें सीमा पार भेज कम से कम 3 महीनों के लिए हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती थी और इसके बाद वो गोली-बारूद लेकर वापस लौटते और उन्हें पहचान छुपाकर काम पर लगाया जा था.

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ऐसे बदल रहा है ट्रेंड

नब्बे के दशक में आतंकवादी गतिविधियों में कमी आई और किसी आतंकी के एनकाउंटर के बाद प्रतिक्रिया या जवाबी हमले भी कम हुए. ऐसा कम ही हुआ जब आतंकवादी की हत्या के बाद उसे शहीद का दर्जा दिया गया हो. बुरहान शुरुवात में पहचान छिपाकर ही काम कर रहा था लेकिन बाद में उसने इस ट्रेंड को बदला और खुलेआम नाम के साथ सबसे सामने आया. सोशल मीडिया के जरिए उसने नाम और फोटो उजाकर की और नया चलन शुरू कर दिया, जो अब पहले से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है.

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