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पाक के पास 1983 से है परमाणु बम: ए क्‍यू खान

पाकिस्‍तान ने 1983 में ही परमाणु बम बना लिए थे. यह कहना है विवादास्‍पद परमाणु वैज्ञानिक ए क्‍यू खान का.

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पाकिस्तान के विवादास्पद परमाणु वैज्ञानिक ए क्यू खान ने कहा है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के सोवियत संघ के खिलाफ अफगान युद्ध में शामिल होने के कारण शुरूआती चरण में ही पाक के परमाणु कार्यक्रम से आंखें मूंदें रखीं जिसका नतीजा यह हुआ कि छह साल की कम अवधि में ही परमाणु बम बन गया.

परमाणु बम बनाने का श्रेय मुझे और मेरी टीम को
खान ने एक उर्दू पाकिस्तानी टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि मैं यह कहता रहा हूं कि अफगान युद्ध ने हमें अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाने का समय दिया. उन्होंने आज न्यूज टेलीविजन को बताया कि इसका (परमाणु बम) श्रेय मुझे और मेरी टीम को जाता है क्योंकि यह बेहद मुश्किल काम था, एक प्रकार से असंभव कह लीजिए. लेकिन हमारे कार्यक्रम पर अमेरिका और यूरोप के दबाव के चलते, यह सच है कि यदि उस समय अफगान युद्ध नहीं होता तो हम इतना जल्दी परमाणु बम बनाने में सफल नहीं हो पाते.

अप्रसारित इंटरव्यू की प्रति अमेरिका को मिली
कराची में 31 अगस्त को प्रसारित खान के इस साक्षात्कार को डायरेक्टरेट आफ नेशनल इंटेलीजेंस ओपन सोर्स सेंटर द्वारा उर्दू से अनुवाद करवाया गया. खान को हाल ही में घर में नजरबंदी से मुक्त किया गया है. अनुवादित साक्षात्कार को सार्वजनिक रूप से प्रसारित नहीं किया गया लेकिन सीक्रेसी न्यूज आफ दी फेडरेशन आफ अमेरिकन साइंटिस्ट द्वारा इसकी एक प्रति हासिल की गयी. मुशर्रफ प्रशासन द्वारा घर में नजरबंद रखे गए पाक वैज्ञानिक ने कहा कि जब पाकिस्तान ने पहली बार यूरेनियम संवर्धन का काम शुरू किया तो उसके मात्र छह साल बाद ही वह परमाणु हथियार का परीक्षण करने को तैयार हो गया था.

1983 में संवर्धन का 90 फीसदी काम पूरा
पाक वैज्ञानिक खान ने कहा‘‘ छह अप्रैल 1978 वह दिन था जब हमने पहली बार यूरेनियम संवर्धन क्षमता हासिल की. 1983 के शुरूआत तक हमने 90 फीसदी (संवर्धन) लक्ष्य हासिल कर लिया था. उन्होंने कहा कि दस दिसंबर 1984 को मैंने जनरल जिया को एक पत्र लिखा और उन्हें बताया कि हथियार तैयार है और हम इसमें एक सप्ताह के नोटिस पर विस्फोट कर सकते हैं. उन्होंने कहाकि लेकिन जिया ने बम का परीक्षण नहीं करने का फैसला किया.

अमेरिका ने परमाणु कार्यक्रम देखकर भी अनदेखा किया
साक्षात्कार के अनुवाद की प्रति के अनुसार, हम अफगान युद्ध में अमेरिका के साथ सहयोग कर रहे थे. सहायता मिल रही थी. हमने जनरल जिया और उनकी टीम से परीक्षण की दिशा में आगे बढ़ने को कहा लेकिन उन्होंने कहा कि हम परीक्षण नहीं कर सकते क्योंकि इसके गंभीर परिणाम होंगे. उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि अमेरिका अफगान युद्ध में हमारे समर्थन के चलते हमारे परमाणु कार्यक्रम को देखकर भी अनदेखा कर रहा है इसलिए हमारे लिए यह मौका है कि हम कार्यक्रम को और विकसित करें. उन्होंने कहा कि परीक्षण तो बाद में किसी भी समय किए जा सकते हैं. पाकिस्तान परमाणु हथियार कार्यक्रम की समय सीमा के अतिरिक्त खान ने अपने साक्षात्कार में कार्यक्रम पर आयी लागत और साजो सामान तथा निर्यात नियंत्रणों से उनके बच निकलने के बारे में भी चर्चा की. उन्होंने कहा‘‘ वे हमें मात नहीं दे सकते थे क्योंकि हम उनसे हमेशा एक कदम आगे रहे.

उपकरण कई खाड़ी देशों से खरीदे गए
खान ने कहा कि चूंकि मैं पिछले 15 साल से यूरोप में रह रहा था, मुझे उनके उद्योग और उनके आपूर्तिकर्ताओं के बारे में अच्छे से पता था. मुझे पता था कि कौन क्या बनाता है. जब मैं पाकिस्तान आया तो मैंने उनसे उपकरण खरीदना शुरू कर दिया जब तक कि उन्होंने हमें उपकरण बेचने को अवैध करार नहीं दिया. इसके बाद हमने अन्य देशों, जैसे कुवैत, बहरीन, संयुक्त अरब अमीरात, अबु धाबी तथा सिंगापुर आदि के माध्यम से यही उपकरण खरीदना शुरू कर दिया. संवर्धन तकनीक के प्रसार का अध्ययन कर रही एफएएस शोधकर्ता इवान्का ब्रजास्का ने कहा कि साक्षात्कार पाकिस्तान की आपूर्ति श्रंखला के बारे में भी कुछ रोचक जानकारी मुहैया कराता है जिसके बारे में खान ने कहा है कि यह ईरान और लीबिया के जैसा ही है.

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