जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर आजतक से खुलकर बात की. उमर ने घाटी में जारी हिंसा, पत्थरबाजी और कूलभूषण के मुद्दे पर भी अपनी बेबाक राय रखी. बातचीत के दौरान उमर अब्दुल्ला ने कहा, "कश्मीर में हालात लगातार खराब बने हुए हैं जो कि चिंता की बात है. सर्दियों के समय बर्फ की वजह से जरूर थोड़े समय के लिए शांति हुई थी लेकिन यह बात पहले सही कही जा रही थी की गर्मियां आते ही स्थिति बदतर हो जाएगी. क्योंकि 2016 के बाद स्थिति को बेहतर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए हैं. जो लोग पिछले साल ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार थे उनसे बात करने की ना तो केंद्र सरकार की तरफ से कोशिश की गई और ना ही राज्य सरकार की तरफ से. हम लोगों ने बार-बार यह कहा है कि जम्मू-कश्मीर का मसला सिर्फ पैसों का मसला नहीं है और इसे पैकेज दे कर हल नहीं किया जा सकता. ना ही यह टूरिज्म का मसला है जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के नौजवानों के पास दो ही रास्ता है टूरिज्म या टेररिज्म का."
उमर अब्दुल्ला ने प्रधानमंत्री के बयान को गलत बताते हुए कहा, "जब तक उन लोगों से बात नहीं की जाएगी जिनका न तो टेरररिज्म में भरोसा है न ही टूरिज्म में, बल्कि जो लोग इसे एक सियासी मसले के तौर पर देखते हैं, तब तक इसका हल नहीं हो सकता. जब आप कश्मीर के लोगों को दो ही ऑप्शन देते हैं तो क्या होगा."
उमर अब्दुल्ला यह नहीं मानते कि टूरिज्म को बढ़ावा देकर आतंकवाद से निपटा जा सकता है. उनका तर्क ये है कि 80 के दशक के अंत में सबसे ज्यादा टूरिस्ट कश्मीर आए थे लेकिन उसी वक्त कश्मीर के नौजवानों ने बंदूक उठाई. उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर में बहुत सी ऐसी जगह हैं जो टूरिज्म के नक्शे पर ना तो हैं और ना ही जहां पर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा सकता है. उमर पूछते हैं, "क्या ऐसी जगह के लोगों के लिए सिर्फ आतंकवाद का रास्ता ही बचता है?"
लोगों और सरकार के बीच संवाद का सिलसिला खत्म
श्रीनगर के उपचुनाव में भारी हिंसा और बहुत कम मतदान को उमर अब्दुल्ला लोगों में डर और गुस्से से जोड़ते हैं. उनका कहना था, "जब सुबह से पत्थरबाजी शुरू हो गई और हिंसा शुरू हो गई तो जो लोग वोट डालना चाहते थे वह भी वोट नहीं डाल सके. लेकिन उनके हिसाब से सबसे गंभीर बात यह है कि पिछले दो-ढाई साल में लोगों और सरकार के बीच संवाद का सिलसिला खत्म हो चुका है. जब तक उसको नहीं ठीक किया जाता, तब तक उनके हिसाब से कुछ नहीं हो सकता."
भूल गए घोषणापत्र
उमर अब्दुल्ला कहते हैं, "पीडीपी के साथ समझौता करते वक्त दोनों पार्टियों ने जो साझा घोषणा पत्र जारी किया था अगर उस पर अमल किया गया होता तो स्थिति कुछ बेहतर होती लेकिन दोनों पार्टियों ने मिलकर उसे पूरी तरह भुला दिया है."
सभी युवक पैसे लेकर नहीं करते पत्थरबाजी
उमर अब्दुल्ला यह मानने को तैयार नहीं है कि कश्मीर में तमाम युवक पैसे लेकर पत्थरबाजी करते हैं. उनका कहना है, "हजारों लोग पत्थर फेंकते हैं उनमें से कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो पैसों के लिए यह काम करते हों लेकिन सबके लिए यह नहीं कहा जा सकता. उनका कहना है कि अगर यह सही होता तो नोटबंदी के बाद इस सिलसिले में कमी आई होती. कहा गया था कि नोटबंदी के बाद आतंकवाद भी रुक जाएगा और पत्थरबाजी भी लेकिन आप देख सकते हैं कि ऐसा नहीं हुआ. हो सकता है कुछ लोग पैसों के लिए ऐसा कर रहे हों. लेकिन बहुत से लोग जज्बात में ऐसा कर रहे हैं जो अपना भविष्य इस मुल्क में नहीं देखते."
बीजेपी की जीत का फायदा जम्मू-कश्मीर में नहीं
एक के बाद एक राज्यों में बीजेपी की जीत के बारे में उमर का कहना, "बीजेपी भले ही लगातार चुनाव जीत रही हो लेकिन जम्मू-कश्मीर को इसका फायदा नहीं मिल रहा है. ना तो पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध सुधरे हैं और ना ही कश्मीर में हालत बेहतर हुए हैं. मोदी को अपनी साख का इस्तेमाल कश्मीर की हालत बेहतर करने के लिए करना चाहिए."
साबित करे पाकिस्तान
कुलभूषण जाधव के बारे में उमर अब्दुल्ला का कहना है, "सुषमा स्वराज ने जो कहा है कि उसे बचाने के लिए कुछ भी किया जाएगा हमें उसका इंतजार करना चाहिए. कुलभूषण के बारे में कोई भी कदम उठाने से पहले पाकिस्तान को यह साबित करना होगा कि वह जासूसी कर रहा था. अभी तक पाकिस्तान ऐसा नहीं कर सका है. कुलभूषण को मिलेट्री कोर्ट में ले जाने का क्या मतलब है पाकिस्तान में कोई मिलिट्री राज नहीं है. भारतीय हाई कमीशन के लोगों को कुलभूषण से मिलने भी नहीं दिया गया. कुलभूषण पर अगर मुकदमा चलाना ही था तो सिविल कोर्ट में चलाना चाहिए था. हम ने कसाब पर मुकदमा चलाया तो दुनिया ने देखा कि हमने खुली अदालत में उसका फैसला किया. पाकिस्तान को चाहिए कि वह दुनिया के सामने यह साबित करे."
मोदी से लड़ने को एक हो विपक्ष
उमर अब्दुल्ला ने कहा, "उत्तर प्रदेश के नतीजों के बाद यह बात साफ हो चुकी है कि मोदी से लड़ने के लिए पूरे विपक्ष को एक होना होगा. बिहार में हम इसकी सफलता देख चुके हैं. लेकिन यूपी में यह नहीं हो सका. राहुल गांधी के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता यह कांग्रेस को तय करना होगा कि उनका नेता कौन हो. जहां तक पूरे विपक्ष की बात है यह विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं को तय करना होगा कि आगे की रणनीति क्या हो."