एलओसी पर बर्बर हमले को लेकर गलती मानने की जगह पाकिस्तान की सीनाजोरी जारी है. आंतक की भाषा बोलने वाला पाकिस्तान भारत को शांति का पाठ पढ़ा रहा है.
पहले फौज की नापाक करतूत और अब पाकिस्तानी हुक्मरानों के झूठ पर झूठ. भारतीय जवानो से बर्बर सलूक करने वाले पाकिस्तान की विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार अमन का संदेश दे रहीं हैं. इंसानियत का सर कलम करने के जुर्म में अपने मुल्क के फौजियों पर कार्रवाई करने की जगह उनकी जुबान से निकले हिन्दुस्तान के लिए नसीहत के बोल.
एलओसी पर जिस हरकत की वजह से दोस्ती की राह पर चल रहे भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी शुरू हो गई, उसे नजरअंदाज कर वाशिंगटन में एशिया सोसायटी की बैठक में हिना रब्बानी ने हिन्दुस्तान की तरफ से दिए गए कड़े संकेत को शांति प्रकिया की राह में रोड़ा करार दिया.
सीधी उंगली से घी नहीं निकलता है तो ऊंगली टेढी करनी पड़ती है. सीमा पार से अपने नापाक हरकतों को अंजाम देने में जुटे पाकिस्तान को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और हिन्दुस्तान के आर्मी चीफ ने सख्त लहजे में चेतावनी दी, तो हिना रब्बानी खार को इसमें जंग की आहट दिखने लगी.
हिना रब्बानी ने कहा, 'हम सीमा रेखा पर तीन घटनाएं देख चुके हैं. हमें लग रहा है कि सीमा के उस पार का देश युद्ध चाहता है. भारत में जिस तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है वह निराश करने वाली है. ऐसा लग रहा है कि वहां के सियासतदानों में आक्रामक बयानबाज़ी के लिए होड़ लगी है. अगर पाकिस्तान में कोई दूसरी सरकार होती तो भारत को उसी सुर में जवाब दे सकती थी, लेकिन उनकी सरकार ऐसा नहीं करेगी.
जिस देश की हुकूमत फौज की एक घुड़की से कांपने लगती हो, जिस पाकिस्तान की नीयत की पोल करगिल से लेकर मुंबई हमलों तक कई बार खुल चुकी हो, जिस मुल्क की सेना और आतंकवादियों की सांठगांठ से दुनिया वाकिफ हो, उस पाकिस्तान को भारत ने फिर से कड़ा संकेत देने में देरी नहीं की. सरकार ने साफ कर दिया कि प्रधानमंत्री के बयान पर इस तरह की प्रतिक्रिया जायज नहीं.
हिना रब्बानी ने जनरल विक्रम सिंह के बयान को आक्रामक करार दिया. पाकिस्तानी विदेश मंत्री इस बात को भूल गईं कि हिन्दुस्तान के सेनापति ने कभी भी जंग की बात नहीं की. उन्होंने तो सीज फायर का करार तोड़ने वाले और सैनिक मर्यादा का मान न रखने वाले पाकिस्तानी फौज को चेतावनी दी कि वो अपनी हरकतों से बाज आए. जनरल विक्रम सिंह से जब हिना रब्बानी के बयान का जिक्र किया गया तो उन्होंने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
विदेश मामलों के जानकार भी हिना रब्बानी की बयान को कटघरे में खड़ा कर दिया. विशेषज्ञों ने ये सवाल भी उठाया कि अगर पाकिस्तान की नीयत सही है तो मेंढर हमले के बाद भी सरहद के उस पार से सीज फायर बार बार क्यों तोड़ा गया.
एलओसी पर ये तनातनी तब शुरू हुई जब दोनों देशों के बीच रिश्तों में सुधार के लिए क्रिकेट सीरीज फिर से शुरू हुई. नई वीजा व्यवस्था के बाद शायद तल्खी कम होने का सिलसिला शुरू हो लेकिन सीमा पर कुछ ऐसा हो गया जिसके बाद पूरे देश में पाकिस्तान के प्रति गुस्सा फूट पड़ा. सवाल ये है कि जो दो भारतीय सैनिक शहीद हुए, उन्हें किसने मारा? भारत के बार बार कहने पर भी पाकिस्तान के अफसर और नेता अपनी गलती क्यों नहीं मानते?