इन दिनों टेलीविजन पर भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट विश्व कप के पहले मैच के विज्ञापन जोरदार तरीके से आ रहे हैं. उसमें एक शख्स को दिखाया जाता है कि 1992 का भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला है, और वह पाकिस्तानी शख्स अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए पटाखे लेकर आया है. लेकिन उसके पटाखे बेकार जाते हैं, और पाकिस्तान हार जाता है. इसके बाद 1996 की बारी आती है, और फिर उसके पटाखे बेकार चले जाते हैं. फिर 1999, 2003, 2007 और 2011. लेकिन वह पटाखे किसी काम नहीं आते और इस बीच वह बच्चा खुद बच्चे का बाप बन जाता है. और उसके पटाखे टोकरी में ही धरे रह जाते हैं.
अगर इस परिदृश्य को बीजेपी के साथ जोड़कर देखा जाए, तो मजेदार सीन उभरकर आता है. बीजेपी 1998 में दिल्ली की सत्ता से बाहर हुई थी और तब से ही वह पुरजोर कोशिश के साथ सत्ता में वापसी का इंतजार कर रही थी. पहले शीला दीक्षित ने दिल्ली के चेहरे को बदलने के साथ बीजेपी को 15 साल तक सत्ता से बाहर रखा और फिर 2013 में मौका आया, तो AAP के खुमार ने उन्हें चार सीटों से चूका दिया. बीजेपी चाहते हुए भी सरकार नहीं बना सकी और पार्टी दूसरी पार्टी के विधायकों को न तोड़ने की अपनी बात पर अटल रही. और फिर अब फरवरी में चुनाव कराए तो मुसीबत आ गई, और चार सीटों के लिए तरसने वाली पार्टी चार से भी कम सीटों पर सिमट गई. बेशक बीजेपी तो इन हालात से बाहर नहीं आ सकी है. क्या पाकिस्तान भारत की कमजोर हौसले वाली टीम से पार पा सकेगी?