जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों सहित सभी विचारों वाले संगठनों और समूहों से बातचीत के लिए केन्द्र ने बुधवार को तीन वार्ताकारों के पैनल की घोषणा की जिसमें विख्यात पत्रकार दिलीप पाडगाओंकर शामिल हैं.
इस पैनल में किसी राजनीतिक को जगह नहीं मिली है. कश्मीर घाटी में पिछले कुछ समय से व्याप्त अशांति को शांत करने के प्रयास में तीन सप्ताह पहले घोषित आठ सूत्री पैकेज के तहत इस पैनल का ऐलान किया गया, हालांकि, जम्मू-कश्मीर में कुछ ने इस घोषणा पर खामोशी अख्तियार करे रखी तो कुछ ने सर्द प्रतिक्रिया दी.
जहां तक अलगाववादियों का सवाल है तो उन्होंने इस पैनल को सिरे से खारिज कर दिया. गृह मंत्रालय द्वारा गठित वार्ताकारों के इस पैनल में सूचना आयुक्त एम एम अंसारी और विख्यात शिक्षाविद राधा कुमार भी शामिल हैं. गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि इस पैनल में एक और व्यक्ति को बाद में शामिल किया जा सकता है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में 25 सितंबर को हुई कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक में वार्ताकारों के पैनल को गठित करने का निर्णय किया गया था. {mospagebreak}
पैनल में एक राजनीतिक को शामिल किए जाने की जम्मू-कश्मीर के नेताओं की मांग को खास तवज्जो नहीं देते हुए चिदंबरम ने कहा कि तीनों वार्ताकार ‘काफी विश्वस्नीयता वाले लोग’ हैं और जितनी जल्दी मुमकिन होगा वे अपना काम शुरू कर देंगे. बाद में एक और वार्ताकार की नियुक्ति हो सकती है.
सरकारी बयान में बताया गया कि तीनों वार्ताकारों को जिम्मेदारी दी गई है कि वे जम्मू-कश्मीर के लोगों की समस्याओं को समझने और उनके समाधान की भविष्य की योजना बनाने के लिए राज्य के लोगों से बातचीत का सिलसिला निरंतर जारी रखें. तीनों वार्ताकारों ने सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीय कार्य किए हैं और उन्हें राजनीति तथा आर्थिक मुद्दों, खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के संबंध में काफी समझ है.
बयान में कहा गया, ‘सरकार को उम्मीद है कि सभी तरह के राजनीतिक विचारों वाले लोगों से विचार विमर्श करने के बाद ये वार्ताकार एक ऐसा रास्ता सुझाएंगे जो सही मायनों में जम्मू-कश्मीर के लोगों, खासतौर पर नौजवानों की उम्मीदों को पूरा करता हो.’ पडगांवकर और राधा कुमार, जो कि दिल्ली पालिसी ग्रुप से जुड़े हैं, पूर्व में भी सैयद अली शाह गिलानी सहित अलगववादियों से पिछले दरवाज़े से बातचीत करते रहे हैं. जहां तक अंसारी का सवाल है तो वह कश्मीर के मामले में एकदम नया चेहरा हैं. {mospagebreak}
वार्ताकारों की नियुक्ति की घोषणा के फौरन बाद सबसे पहले गिलानी के नेतृत्व वाली कट्टरपंथी हुर्यित कांफ्रेंस ने उसे नामंजूर करते हुए इसे ‘निर्थक कसरत’ बताया. गिलानी ने इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘यह बेकार की कसरत है. भारत सरकार गूंगे और बहरे की तरह बर्ताव कर रही है.’ नरमपंथी हुर्यित के अध्यक्ष मीरवाइज़ उमर फारूक ने पैनल के नामों की घोषणा पर निराशा जताते हुए कहा, ‘उच्चस्थ स्तर से पहल की जानी चाहिए थी. कश्मीर एक सियासी मसला है और कश्मीर के लोगों तक पंहुच बनाने के लिए संसदीय पैनल उपयुक्त होता.’
नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसी मुख्यधारा वाली पार्टियों ने पैनल पर खामोशी बनाए रखी लेकिन माकपा नेता एम वाई तारीगामी ने पैनल के नामों पर यह कह कर असंतोष जताया कि यह उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगा जिसके लिए इसका गठन किया गया है.