scorecardresearch
 

रामलला के 'प्रकट' होने से राम मंदिर के शिलान्यास तक...परमहंस रामचंद्र दास की कहानी

अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले परमहंस रामचंद्र दास (Paramhans ramchandra das) 'प्रतिवाद भयंकर' जैसे नामों से भी चर्चित रहे. उनके तेवर से कई बार सरकारों की भी नींद उड़ गई थी. उन्होंने राम मंदिर आंदोलन (ram mandir andolan) को एक नई धार दी.

Advertisement
X
Ayodhya: रामशिला लिए परमहंस रामचंद्र दास के साथ अशोक सिंघल और अन्य साधु-संत.
Ayodhya: रामशिला लिए परमहंस रामचंद्र दास के साथ अशोक सिंघल और अन्य साधु-संत.

Advertisement

  • 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्ति प्रकट होने के बाद चर्चा में आया था नाम
  • परमहंस रामचंद्र दास ने 1990 और 92 में कारसेवकों का किया था नेतृत्व
  • अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री से लेकर देशभर के संत समाज पहुंचे थे अयोध्या

22 दिसंबर 1949 की सर्द रात अयोध्या (ayodhya) में एक ऐसा काम हो गया, जिसने सुबह तक दिल्ली में हड़कंप मचा दिया. सुबह तक पूरे अयोध्या में खबर फैल गई कि बाबरी मस्जिद में प्रभु राम प्रकट हो गए हैं. दरअसल रात में कुछ लोगों ने राम चबूतरे से भगवान राम की मूर्ति उठाकर बाबरी मस्जिद में रख दी थी. इस घटना के बाद एक नाम बेहद चर्चा में आ गया था- परमहंस रामचंद्र दास. यही आगे चलकर रामजन्मभूमि आंदोलन (ram janmbhoomi andolan) की धुरी बने. अयोध्या में 5 अगस्त को होने वाले भूमिपूजन से ठीक 5 दिन पहले 31 जुलाई को उनकी 17वीं पुण्यतिथि है.

Advertisement

कारसेवकों के नेतृत्व से लेकर विवादित परिसर गिरने तक के साक्षी

अयोध्या विवाद पहली बार 1885 में कोर्ट पहुंचा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जिस विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, उसकी नींव 22 दिसंबर 1949 की रात को ही पड़ी थी. उसी घटना ने रामजन्मभूमि आंदोलन को एक नया कलेवर दिया, जिसे अमलीजामा पहनाने वाले प्रमुख लोगों में परमहंस रामचंद्र दास भी हैं. 1990 में कारसेवकों के अयोध्या में जुटने का नेतृत्व भी उन्होंने ही किया था. 92 में जब विवादित परिसर का ढांचा गिराया गया, उस समय भी परमहंस उसी स्थान पर मौजूद थे.

babri-masjid_073120025902.jpgरामजन्मभूमि का विवादित परिसर

1949 की घटना बनी टर्निंग प्वाइंट

रामजन्मभूमि की लड़ाई को एक नई धार और दिशा देने वाले परमहंस आखिरी सांस तक इस आंदोलन का नेतृत्व करते रहे. पहले उस घटना का जिक्र जो अयोध्या विवाद में एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट बना और ये पूरा विवाद कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय इसी घटना पर आया था.

जब सुबह-सुबह अयोध्या में गूंजा 'भए प्रकट कृपाला'

तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने अपनी किताब 'अयोध्याः 6 दिसंबर 1992' में इस घटना के संबंध में लिखी गई FIR का जिक्र किया है. एसएचओ रामदेव दुबे ने FIR में लिखा कि रात में 50-60 लोग ताला तोड़कर दीवार फांदते हुए मस्जिद में घुस गए. वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की. इतनी भीड़ के आगे सुरक्षा इंतजाम नाकाफी साबित हुए. लिब्राहन आयोग में भी लिखा गया था कि कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को इस घटना की जानकारी दी. सुबह अयोध्यावासी बाबरी मस्जिद में मूर्ति प्रकट होने से खुशी में 'भए प्रकट कृपाला' गा रहे थे.

Advertisement

दिल्ली तक मच गया था हड़कंप

सुबह होते-होते जिस तेजी से ये खबर अयोध्या में फैली, उतनी ही तेजी से दिल्ली पहुंच गई. उस समय प्रधानमंत्री थे पंडित जवाहर लाल नेहरू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे गोविंद वल्लभ पंत. देश को तब आजादी तो मिल गई थी, पर संविधान अभी लागू नहीं हुआ था. धर्मनिरपेक्षता अभी संवैधानिक ढांचे में नहीं था. लेकिन बिना किसी दुविधा के नेहरू ने पंत से बात कर अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल करने को कहा.

paramhans-ram-chandra-das-3_073120031319.jpg1992 में अयोध्या में परमहंस रामचंद्र दास, अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी.

डीएम ने आदेश मानने से कर दिया था इनकार

फौरन ऊपर से आदेश आया, लेकिन उस समय फैजाबाद के डीएम के के नायर ने उसे मानने से ही इनकार कर दिया. ऐसा करने पर उन्होंने कानून-व्यवस्था और बिगड़ने का हवाला दिया. साथ ही उन्होंने यह सुझाव भी दे डाला कि बेहतर होगा अगर इसका निपटारा अब कोर्ट करे. सरकार को भी उनका सुझाव सही लगा और इस तरह ये मामला कोर्ट में पहुंच गया.

पूजा जारी रखने के लिए कोर्ट चले गए परमहंस

16 जनवरी 1950 को सिविल जज की अदालत में हिंदू पक्ष की ओर से मुकदमा दायर कर जन्मभूमि पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को न हटाए जाने और पूजा की इजाजत देने की मांग की गई. दिगंबर अखाड़ा के महंत रहे परमहंस भी मूर्ति न हटाने और पूजा जारी रखने के लिए कोर्ट चले गए. कोर्ट ने उन्हें इसकी इजाजत दे दी. कई साल बाद 1989 में जब रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने स्वयं भगवान राम की मूर्ति को न्यायिक व्यक्ति करार देते हुए नया मुकदमा दायर किया तब परमहंस ने अपना केस वापस कर लिया.

Advertisement

paramhans-ram-chandra-das-1_073120030303.jpgमहंत अवैद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास.

'प्रतिवाद भयंकर' के नाम से भी मशहूर

बड़े-बड़े ज्ञानियों को अपने तर्कों से हराने वाले परमहंस रामचंद्र दास 'प्रतिवाद भयंकर' जैसे नाम से भी चर्चित रहे. परमहंस रामचंद्र दास की प्रवृत्ति किसी भी बात को सहज स्वीकार कर लेने की नहीं थी, बल्कि वे हर बात को अपने तर्कों से काटने की क्षमता रखते थे. उसके विरोध में प्रतिवाद करते थे. इसके चलते ही उन्हें ‘प्रतिवाद भयंकर’ नाम भी दिया गया. परमहंस रामचंद्र दास अपने सख्त तेवर के लिए भी जाने जाते रहे हैं. उनके तेवर से कई बार सरकारों की भी नींद उड़ गई थी. 1984 को दिल्ली में हुई पहली धर्म संसद से लगातार वे आंदोलन को धार देते रहे. अपना पूरा जीवन राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए न्योछावर करने वाले परमहंस रामचंद्र दास को शलाका पुरुष भी कहा जाता था.

दी हुईं शिलाएं आज भी अयोध्या के कोषागार में मौजूद

साल 1994 से परमहंस रामचंद्र दास के प्रतिनिधि रहे नीशेंद्र मोहन मिश्रा ने aajtak.in से बातचीत में बताया कि उन्होंने 2002 में राम मंदिर के लिए फैजाबाद प्रशासन को शिलाएं दान की थीं. उनकी इच्छा थी कि जब भी राम मंदिर का निर्माण हो, इन शिलाओं का उनमें प्रयोग हो. उस समय पीएमओ में अयोध्या सेल के इंचार्ज शत्रुघ्न सिंह विशेष विमान से वो शिला लेने अयोध्या आए थे. उनकी दी हुईं शिलाएं आज भी अयोध्या के कोषागार में डबल लॉकर में बंद हैं. क्या 5 अगस्त को होने वाले भूमि पूजन में उनका इस्तेमाल होगा, इस सवाल पर उनका दर्द उभर जाता है. वो कहते हैं कि फिलहाल ऐसी कोई तैयारी तो नहीं दिखती. अयोध्या में अब तक परमहंस रामचंद्र दास के नाम पर कोई योजना या स्मृति स्थल न होने का उन्हें कष्ट है.

Advertisement

paramhans-ram-chandra-das-2_073120030411.pngपरमहंस रामचंद्र दास.

स्वभाव में फक्कड़पन, बंदरों को खिलाते थे काजू

परमहंस रामचंद्र दास की विलक्षण प्रतिभा से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए नीशेंद्र कहते हैं कि साल 2002 में फैजाबाद के ही एक होम्योपैथिक कॉलेज में व्याख्यान के लिए उन्हें बुलाया गया था. उन्होंने वहां के छात्रों को जो बातें बताईं, वो खुद प्रिंसिपल सुनकर हैरान रह गए. फक्कड़पन उनके स्वभाव में था. खिलाने का भी उन्हें बहुत शौक था. अबोध जीव-जंतुओं से उन्हें बेहद प्रेम था. पैसा रहा तो बंदरों को भी काजू-बादाम खिलाते थे और न रहा तो मांगकर चना खिलाते थे. इसी तरह गायों के लिए पूरे ठेले का अमरूद ही गिरवा देते थे.

मायावती भी थीं परमहंस रामचंद्र दास की मुरीद

नीशेंद्र बताते हैं कि उन्होंने कभी गुरुजी (परमहंस रामचंद्र दास) के हाथों में किताब नहीं देखी. इसके बावजूद उन्हें इतना ज्ञान था जो सभी के लिए आश्चर्य का विषय रहता था. परमहंस को मायावती भी बहुत मानती थीं. समय-समय पर मायावती परमहंस के लिए भेंट भेजती रहती थीं. एक बार जब परमहंस अस्पताल में थे, तो मायावती उन्हें देखने अस्पताल पहुंच गईं थीं. दरअसल बिहार के एक मंदिर में परमहंस रामचंद्र दास ने न सिर्फ एक दलित पुजारी को नियुक्त किया, बल्कि उससे खाना बनवाकर खुद खाए. उनकी इस पहल से मायावती उनकी मुरीद हो गईं.

Advertisement

‘मुझे मोक्ष नहीं, मंदिर की कामना’

अपने जीवन के अंतिम काल में 14 जून 2003 को लखनऊ पीजीआई में उन्होंने तीन अभिलाषाएं बताईं थीं. पहला- राम मंदिर, कृष्ण मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर. दूसरा- देश में गोहत्या बंदी और तीसरा अखंड भारत को देखना. 1934 में ही रामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़ने वाले परमहंस हमेशा कहते थे- ‘मुझे मोक्ष नहीं, मंदिर की कामना है’.

paramhans-ram-chandra-das-and-iqbal-ansari_073120030452.jpgपरमहंस रामचंद्र दास और इकबाल अंसारी.

परमहंस रामचंद्र दास और इकबाल अंसारी की दोस्ती

1949 में जब परमहंस रामचंद्र दास ने विवादित स्थल पर पूजा करने की कोर्ट से इजाजत मांगी तो मुस्लिम पक्ष की ओर से इकबाल अंसारी भी विरोध में कोर्ट चले गए. अपने-अपने आराध्यों के लिए दोनों ही कोर्ट गए, लेकिन बरसों तक पैरवी करते-करते दोनों ऐसे दोस्त बन गए जिसकी अब मिसाल दी जाती है.

तेवर और ताला तोड़ो आंदोलन

रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास अपने तेवर के लिए भी जाने जाते रहे हैं. 1985 को कर्नाटक के उडुपी में हुई दूसरी धर्मसंसद में उन्होंने ऐलान किया था कि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक जन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खोला गया तो ताला खोलो आंदोलन को वे ताला तोड़ो आंदोलन में बदल देंगे. उनके तल्खे तेवर के चलते ही 1 फरवरी 1986 को ही ताला खोल दिया गया.

Advertisement

ayodhyav_073120030529.jpgअयोध्या.

शिलापूजन ने आंदोलन को दी नई धार

1989 में प्रयाग महाकुंभ में परमहंस रामचंद्र दास के नेतृत्व में तीसरी धर्म संसद हुई जिसमें शिला पूजन और शिलान्यास का संकल्प लिया गया. इस संकल्प ने आंदोलन को और तेज कर दिया. 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम जन्मभूमि का शिलान्यास कर दिया गया. हजारों साधु-संतों की मौजूदगी में कामेश्वर नाम के एक दलित युवक के हाथों राम मंदिर के लिए पहली ईंट रखवाई गई थी. जनवरी 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक चेतावनी संत यात्रा निकाली गई. इसकी अगुवाई भी परमहंस रामचंद दास ने ही की.

92 वर्ष की उम्र में निधन

2003 की जुलाई में तबीयत बिगड़ने पर उन्हें लखनऊ पीजीआई ले जाया गया. लेकिन अंतिम समय में परमहंस रामचंद्र दास ने अयोध्या में रहने की इच्छा जताई. तब 29 जुलाई को उन्हें लखनऊ से अयोध्या ले जाया गया. 31 जुलाई की सुबह अयोध्या के दिगम्बर अखाड़े में 92 वर्ष की अवस्था में परमहंस रामचंद्र दास का निधन हो गया. उनके निधन की खबर से पूरे अयोध्या में देशभर के संत समाज का जमावड़ा लगने लगा. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, महंत अवैद्यनाथ जैसी हस्तियां अंतिम संस्कार में पहुंचीं थीं.

सरयू तट पर बनी समाधि, आते रहे हैं योगी

सरयू तट पर ही परमहंस रामचंद्र दास की समाधि बनाई गई है. परमहंस रामचंद्र दास से योगी आदित्यनाथ का बेहद लगाव रहा है. इसी के चलते योगी लगातार पुण्यतिथि के मौके पर उनकी समाधि पर आते रहे हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ये सिलसिला नहीं टूटा. योगी जब भी अयोध्या आते हैं तो दिगंबर अखाड़ा भी जरूर जाते हैं. अब एक बार फिर 17वीं पुण्यतिथि के मौके पर योगी आदित्यनाथ 31 जुलाई को अयोध्या जा रहे हैं.

Advertisement
Advertisement