लोकसभा में बुधवार को वित्त विधेयक 2018 बिना चर्चा के ही ध्वनि मत से पारित किया गया. सदन में सरकार ने सभी अनुदान मांगों को 'गिलोटिन' के जरिए मंजूरी दी और 21 सरकारी संशोधनों को भी पारित कर दिया गया. इसी के साथ सदन में मोदी सरकार के आखिरी आम बजट की प्रक्रिया पूरी हो गई.
लोकसभा में महज 25 मिनट की कार्यवाही के भीतर ही वित्त मंत्रालय का सबसे बड़ा विधेयक पारित हुआ. इस बजट में 89.25 लाख करोड़ रूपये के खर्च की योजनाएं शामिल हैं. सदन ने ध्वनिमत से विपक्ष के विभिन्न कटौती प्रस्तावों को नामंजूर कर दिया गया.
पहले भी बिना चर्चा के पारित
यह पहला मौका नहीं है जब बजट बिना चर्चा के सदन से पारित हुआ हो. पिछली यूपीए सरकार से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में भी बजट को बिना चर्चा के पारित किया गया.
साल 2003-04 में जसवंत सिंह के वित्त मंत्री रहते एनडीए सरकार ने बजट को बगैर चर्चा के पारित कराया था. इसके बाद साल 2013-14 में पी चिदंबरम के वित्त मंत्री रहते यूपीए सरकार का बजट भी बिना चर्चा के सदन से पारित हुआ था.
विधानसभाओं में कई बार बिना चर्चा के बजट को पारित कराया जाता है लेकिन केंद्रीय बजट के मामले में ऐसे मौके कम ही आते हैं. हालांकि बजट को बिना चर्चा के पारित कराना संसदीय गरिमा और लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत माना जाता है.
सदन में पीएनबी घोटाला, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा, कावेरी जल बोर्ड जैसे मुद्दों को लेकर लगातार गतिरोध जारी है. बुधवार को भी वित्त विधेयक पारित होने के दौरान सदन में भारी हंगामा देखने को मिला. पिछले 9 दिन से अगर 8 मार्च के अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को छोड़ दें तो दोनों सदनों की कार्यवाही एक भी दिन नहीं चल पाई है.
विपक्ष ने बताया काला-दिन
सदन में बिना चर्चा के बजट को मंजूरी देने पर विपक्ष ने सरकार पर कड़ा हमला बोला है. लोकसभा सांसद और कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, ‘आज हमारे देश के प्रजातंत्र के लिए एक काला दिवस है.' उन्होंने कहा कि जिस तरीके से शोर-शराबे में वित्त मंत्रालय के सबसे महत्वपूर्ण विधेयक को पारित किया जा रहा है, उससे हमारे प्रजातंत्र पर कलंक लग चुका है.’ लोकसभा में विपक्षी नेताओं ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया.
संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार सदन में बार-बार विपक्षी दलों से अपील करते रहे कि वो सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलने दें और हंगामा न करें. सरकार का कहना है कि वह संसद में किसी भी मुद्दे पर चर्चा को तैयार है लेकिन कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल चर्चा से भाग रहे हैं और सदन को चलने नहीं दे रहे.
लोकसभा से पारित होने के बाद वित्त और विनियोग विधेयक 2018 को अब राज्यसभा को भेज दिया गया है. चूंकि यह धन विधेयक है, ऐसे में राज्यसभा में इसके 14 दिन में मंजूर नहीं होने की स्थिति में भी इसे पारित माना जाएगा. इसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा.
बजट नहीं पारित होता तो?
सरकार के लिए 31 मार्च से पहले संसद से बजट पारित कराना जरूरी है क्योंकि इसके बिना सभी वित्तीय कामकाज ठप हो जाएंगे. यही वजह है कि सरकार ने बुधवार को ही इसे लोकसभा से पारित करा लिया और 14 दिन के भीतर राज्यसभा से मंजूरी न मिलने पर भी इसे पारित मान लिया जाएगा. इसके बाद वित्त वर्ष खत्म होने से पहले इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी. हालांकि ऐसा एक भी बार नहीं हुआ है कि संसद से बजत पारित नहीं हो सका हो.
बता दें कि संसद से बिना बजट पास कराए सरकारी खजाने से एक भी रुपये का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. साथ ही कर से जुड़े प्रस्ताव भी लागू नहीं कराए जा सकते. इससे पहले जब बजट 28 मार्च को पेश किया जाता था और बजट सत्र मई तक चलता था तब लेखानुदान का प्रावधान था लेकिन अब बजट को 31 मार्च तक पारित कराना जरूरी है.