जंक फूड स्वास्थ्य के लिए खराब हैं. बच्चों में इसकी लत बढ़ती जा रही है और इसकी सबसे बड़ी वजह है टेलीविजन से कार्यक्रमों में जंक फूड के विज्ञापन. यह कहना था इस मुद्दे को सदन में उठाने वाले सांसदों का. लोकसभा में गुरुवार को प्रश्नकाल के दौरान यह मामला जोर-शोर से उठा और कई सांसदों ने सरकार से यह जानना चाहा कि जंक फूड के टीवी चैनल्स पर विज्ञापन को रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है.
अकोला, महाराष्ट्र से बीजेपी के सांसद संजय धोत्रे ने सवाल उठाया कि जंक फूड की कंपनियां बच्चों को लुभाने के लिए खासतौर पर बच्चों के चैनल और उनसे संबंधित कार्यक्रम के दौरान ऐसे विज्ञापन दिखाती हैं ताकि बच्चों को आसानी से आकर्षित किया जा सके. उन्होंने पूछा कि इसको रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है. उन्होंने मांग रखी कि सरकार को उनके विज्ञापन पर पूरी तरह से रोक लगा देनी चाहिए.
सूचना प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने जवाब देते हुए कहा कि अनुचित विज्ञापनों को रोकने के लिए एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया विज्ञापनों पर नजर रखती है. इसके लिए सरकार की तरफ से जागरूकता अभियान भी चला रही है. राज्यवर्धन सिंह राठौर ने बताया कि 9 कंपनियों ने आगे बढ़कर खुद ही कहा है कि वो बच्चों के कार्यक्रम के दौरान ऐसे विज्ञापन नहीं दिखाएंगे.
राठौड़ ने यह भी बताया कि स्कूल की कैंटीन में जंक फूड के लिए पहले ही रोक लगाई जा चुकी है. उन्होंने कहा कि विज्ञापन पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए कानून बनाना जरूरी है और यह स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आता है.
बीजू जनता दल के विजयंत पांडा ने सवाल पूछा कि तमाम खाने की चीजें ऐसी हैं जिसमें नमक और चीनी की मात्रा जरूरत से ज्यादा है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, क्या सरकार ऐसी चीजों के विज्ञापनों को रोकने के लिए कोई कदम उठाएगी? अपने जवाब में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने कहा कि खाने पीने की तमाम चीजों को एफएसएसएआई प्रमाणित करती है और उसी आधार पर उन्हें बिक्री की अनुमति दी जाती है.