केंद्र में सत्ताधारी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को चर्चा और वोटिंग होगी. मोदी सरकार के सवा चार साल में पहली बार विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया है. सरकार के पास बहुमत के आंकड़े से ज्यादा नंबर हैं, इसलिए वो इस प्रस्ताव के सफल न होने को लेकर आश्वस्त है. वैसे देश के संसद के इतिहास में अब तक करीब 26 बार अविश्वास प्रस्ताव आए हैं लेकिन दो बार ही विपक्ष को इसमें सफलता मिली है.
भारतीय संसद में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ आया था. नेहरू के खिलाफ जेबी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. कांग्रेस के दोबारा से अध्यक्ष न बनाए जाने के चलते जेबी कृपलानी ने पार्टी छोड़कर किसान मजदूर प्रजा पार्टी शुरू कर दी, जो बाद में सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में बदल गई.
प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन सांसद जेबी कृपलानी द्वारा नेहरू सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 62 वोट और विरोध में 347 वोट पड़े. इस तरह से ये अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिर गया.
नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री बने. तीन साल के उनके कार्यकाल में विपक्ष के द्वारा तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, लेकिन एक बार भी विपक्ष को सफलता नहीं मिल सकी. इसके बाद सत्ता की कमान इंदिरा गांधी को मिली. शास्त्री के बचे हुए कार्यकाल को इंदिरा गांधी ने पूरा किया. इस दौरान उनके खिलाफ दो बार प्रस्ताव लाया गया.
भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे ज़्यादा अविश्वास प्रस्ताव का सामना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को करना पड़ा है. इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्ष 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया, पर एक भी बार उसे कामयाबी नहीं मिली.
विपक्ष की ओर से सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योति बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ रखे थे.
भारत के संसदीय इतिहास में पहली बार विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को सफलता 1978 में मिली. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. मोरारजी देसाई सरकार के कार्यकाल के दौरान उनके खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.
पहले प्रस्ताव से उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन 1978 में दूसरी बार लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे. अपनी हार का अंदाजा लगते ही मोरारजी देसाई ने मत-विभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया.
लाल बहादुर शास्त्री की तरह नरसिम्हा राव की सरकार को भी तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. 1993 में नरसिम्हा राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मात दे पाए. नरसिम्हा सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव के वोटिंग में 14 वोट के अंतर से सरकार बची. हालांकि उनके ऊपर अपनी सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को प्रलोभन देने का आरोप भी लगा.
एनडीए सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए. वाजपेयी जब खुद प्रधानमंत्री बने तो उन्हें भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. इनमें से पहली बार तो वो सरकार नहीं बचा पाए लेकिन दूसरी बार विपक्ष को उन्होंने मात दे दी.
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंदर से हार गई थी. उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया था. इसके बाद 2003 में वाजपेयी के खिलाफ लाए अविश्वास प्रस्ताव को एनडीए ने आराम से विपक्ष को वोटों की गिनती में हरा दिया था. एनडीए को 312 वोट मिले जबकि विपक्ष 186 वोटों पर सिमट गया था.
साल 2008 में सीपीएम मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. यह प्रस्ताव अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते की वजह से लाया गया था. हालांकि कुछ वोटों के अंतर से यूपीए की सरकार गिरने से बच गई. अब मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी अविश्वास प्रस्ताव लाई है. शुक्रवार को अग्निपरीक्षा का दिन तय हुआ है.