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2019 में बदलेगी लोकसभा, क्या पारित हो पाएंगे लटके पड़े ये बिल?

आपराधिक कानून संशोधन बिल हो या फिर दलितों से अत्याचार के खिलाफ SC/ST एक्ट संशोधन बिल, ये ऐसे विधेयक थे जिनसे आम लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं. हालांकि अब भी कई और अहम विधेयकों को संसद की मंजूरी का इंतजार है और ऐसे विधेयकों के साल 2019 में पारित होने की उम्मीद भी लगाई जा रही है.

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संसद परिसर में शिव के अवतार में  टीडीपी सांसद (PTI फोटो)
संसद परिसर में शिव के अवतार में टीडीपी सांसद (PTI फोटो)

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संसद में बीते साल कई ऐसे विधेयकों को मंजूरी दी गई जो आम नागरिकों के जीवन और उनके अधिकारों से जुड़े हुए हैं. बच्ची से रेप पर फांसी से जुड़ा आपराधिक कानून संशोधन बिल हो या फिर दलितों से अत्याचार के खिलाफ SC/ST एक्ट संशोधन बिल, ये ऐसे विधेयक थे जिनसे आम लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं. हालांकि अब भी कई और अहम विधेयकों को संसद की मंजूरी का इंतजार है और ऐसे विधेयकों के साल 2019 में पारित होने की उम्मीद भी लगाई जा रही है.

महिला आरक्षण बिल

संसद में करीब 22 साल से महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने से जुड़ा बिल लटका हुआ है. साल 2010 में इस बिल को यूपीए सरकार के दौरान राज्यसभा से पारित करा लिया गया था लेकिन लोकसभा में समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों के विरोध की वजह से ये बिल पास नहीं हो सका. यह बिल 1996 में एच डी देवेगौड़ा सरकार ने पहली बार पेश किया था और तब कई पुरुष सांसदों ने इसका भारी विरोध किया था.

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बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संसद में महिला आरक्षण बिल पारित कराने की मांग करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी इस बिल का पूरा समर्थन करने को तैयार है. संसद के मौजूदा सत्र में भी महिला आरक्षण बिल को मंजूरी देने की मांग उठी है. हालांकि बीते साढ़े चार साल से सत्ताधारी बीजेपी ने लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद इस बिल को पारित कराने की कोई कोशिश नहीं की.

जन लोकपाल बिल

भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच के लिए 2011 के अन्ना आंदोलन में इस बिल की पुरजोर मांग की गई थी. पांच दशक के इतिहास वाले लोकपाल बिल को 2013 में यूपीए सरकार ने दौरान संसद से मंजूरी दी गई थी, फिर भी आजतक देश में लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है. बिल पारित होने के बाद साल 2016 में इससे जुड़े एक संशोधन बिल को भी संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट भी कई बार जल्द से जल्द लोकपाल की नियुक्ति करने की बात कह चुका है. यानी ये ऐसा बिल है जो पास तो हो गया लेकिन उसपर अमल अब तक नहीं हो सका.

तीन तलाक बिल

केंद्र में मोदी सरकार के गठन के बाद सरकार ने किसी एक बिल पर सबसे ज्यादा जोर दिया है तो वो यही तीन तलाक बिल है. साल 2017 में सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार से जुड़े इस बिल को लोकसभा से पारित करा लिया था लेकिन राज्यसभा में अल्पमत होने के चलते बीजेपी के लिए मुश्किल हुई और यह बिल उच्च सदन से वापस भेज दिया गया. इसके बाद सरकार इसके लिए अध्यादेश भी लेकर आई थी.

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मौजूदा शीतकालीन सत्र में कड़ी मशक्कत के बाद सरकार इस बिल को लोकसभा से पारित कराने में सफल हो गई. हालांकि कांग्रेस समेत विपक्षी दल इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग पर अड़े रहे. अब बिल राज्यसभा में पेश होने वाला है, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं है. कांग्रेस और टीएमसी ने फिर से तीन तलाक बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की है और यह बिल तमाम कोशिशों के बावजूद राज्यसभा में पेश नहीं हो सका है.

सरोगेसी रेगुलेशन बिल

मोदी सरकार साल 2016 में सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के मसकद से यह बिल लेकर आई थी. जनवरी 2017 में बिल लोकसभा में पेश भी किया गया लेकिन तमाम आपत्तियों के बाद इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेज दिया गया था, तब से यह बिल संसद में लटका हुआ है. इस सत्र में सरकार ने इस बिल को लोकसभा से पारित करा लिया है लेकिन राज्यसभा से अब भी इसे मंजूरी का इंतजार है.

इस विधेयक में व्यावसायिक सरोगेसी पर पाबंदी की बात कही गई है. साथ ही ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं जिससे निसंतान दंपती सरोगेसी का सहारा ले सकेंगे. विधेयक में सरोगेसी के संदर्भ में 'मां’ शब्द को परिभाषित किया गया है और यह भी तय किया गया है कि कौन लोग सरोगेसी की सेवा ले सकते हैं. यह विधेयक महिलाओं का शोषण रोकने में कारगर साबित हो सकता है.

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नागरिकता संशोधन बिल

नागरिकता से जुड़ा संशोधन बिल भी सरकार की टॉप लिस्ट में था लेकिन इस बिल को संसद से मंजूरी नहीं मिल सकी है. साल 2016 में सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश किया था लेकिन फिर इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया. बीजेपी सांसद राजेंद्र अग्रवाल की अध्यक्षता में बनी जेपीसी तीन जनवरी को होने वाली अपनी अगली बैठक में ड्राफ्ट को अंतिम रूप देगी. लोकसभा में इसी सप्ताह इस विधेयक को मूल रूप में पेश किया जाएगा, क्योंकि जेपीसी ने विपक्ष के सभी संशोधनों को नामंजूर कर दिया है.

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