दो पांव जिस पर ठुमकते हुए कभी देखा था, वो हाथ जो स्कूल जाते वक्त हिलाकर बाय बोला करता था, वो आवाज जो कभी चहकते हुए कानों में मिसरी घोलती थी... एकाएक थम गई. सपने जो देखे थे वह पल में बिखर गए. अब वो स्कूल से कभी नहीं लौटेगा. अब उसकी आवाज घर आंगन में कभी नहीं गूंजेगी. वह अब नहीं आएगा.
आतंकियों से घिरे एक बच्चे का अपनी अम्मी को खत
पाकिस्तान की एक रिपोर्टर रोने लगी. वह अपने चैनल पर मुखातिब थीं. एक मां थी. सरहद के इस पार उस दर्द को सबने महसूस किया था. आज सुबह जब मैं अपने बच्चे को स्कूल भेजने के लिए तैयार कर रहा था तो सहसा उसकी याद आ गई. स्कूल भेजने की तैयारी के दौरान मैं अपने बच्चे से काफी बातें करता हूं. उसका चहकना, स्कूल की बातें शेयर करना, अपने दोस्तों की बातें बताना और अंत में कहना पापा आज आप जल्दी घर आ जाइएगा, आपके साथ मुझे ढेर सारी और बातें करनी हैं और खेलना भी है. उसकी बातें सुनकर, उसके चेहरे की मासूमियत को देखकर मैं रोज नई ताजगी से भर जाता हूं.
शुक्रिया... मुझे लाश बनाने के लिए
आज जब उस रिपोर्टर को रोते देखा तो मेरी भी आंखें भर आई. वह एक मां थी. आज सुबह अपने बिस्तर पर बच्चे को न पाकर उसने किसे जगाया होगा. कोई आवाज भी तो नहीं सुनी होगी उसने. आखिर किसके लिए नाश्ता बनाया होगा. लंच बॉक्स नहीं दिखा होगा... वॉटर बॉटल नहीं दिखी होगी. शूज़ भी नहीं मिले होंगे. उसकी स्कूल ड्रेस वहीं कहीं रखी होगी... निकालकर जैसे रोज रखती है.
...और हमेशा के लिए गुम हो गईं किलकारियां
मैं थोड़ा परेशान हो गया. किसी सपने को तैयार करने में वर्षों लग जाते हैं और बिखरने में पल भर का समय भी नहीं लगता. उस मां ने अपने बचपन को उस बच्चे में महसूस किया होगा. उसके साथ अपना बचपन जी रही होगी. कई-कई सपनें उसकी आंखों में घर कर गए होंगे. लेकिन पलभर में वो सारे सपने बिखर गए. चंद धमाकों ने उन सपनों को चीथड़े में तब्दील कर दिया था.
अपने बच्चे को स्कूल के गेट पर छोड़कर वापस लौट रहा था. वह कैम्पस के भीतर जाते हुए हाथ हिलाकर बाय बोल रहा था. चेहरे पर हमेशा की तरह मुस्कान थी और आंखों में उम्मीदों की चमक. वापस घर लौटा तो मेरी मिसेज गुमशुम बैठी मिली. अमूमन इस बीच वह चाय बना लेती थी और रोज की तरह अखबार के पन्ने को पलटते हुए मैं चाय की चुस्की लेने लगता था.
मिसेज चुपचाप बैठी थी. मुझे लग रहा था जैसे मैं पेशावर में हुए हादसे के शिकार किसी बच्चे की मां को दूर से देख रहा हूं. वह मां अभी अपने बच्चे को स्कूल नहीं भेज पाई है. उसने अपने बच्चे की चहकती आवाज, हिलते हाथ, बाय बोलते शब्द, अभी नहीं सुने हैं. ...और हो सकता है आज उसे अजान भी सुनाई न दी हो, सुबह के पक्षियों के कलरव भी सुनाई न दिए हों और वह इस ख्याल में बैठी हो कि ...अभी तो शाम ढली है, रात हुई है. फिर सुबह होगी. अजान भी सुनूंगी, पक्षी चहचहाएंगे... तब मैं आवाज दूंगी. वह कुनमुनाते हुए बिस्तर छोड़ेगा... मैं उसके लिए नाश्ता बनाऊंगी, लंच बॉक्स पैक करूंगी, वॉटर बॉटल रखूंगी. उससे स्कूल की बातें करूंगी... वह स्कूल जाते हुए हाथ हिलाएगा. मुस्काते हुए बाय बोलेगा... मैं भी हाथ हिलाकर बाय बोलूंगी... और तब तक देखते रहूंगी, जब तक वह सामने दिखता रहेगा.