किसी महिला का न्यूड चित्र प्रकाशित करना अश्लील नहीं माना जा सकता है. देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की व्याख्या करते हुए यह स्पष्टीकरण दिया है. 154 वर्ष पुराने आईपीसी में अश्लीलता की धारा की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला का न्यूड चित्र आईपीसी की धाराओं तथा इंडिसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वीमन (प्रॉहिबिशन) एक्ट के तहत अश्लील नहीं माना जा सकता है. यह खबर अंग्रेजी अखबार 'द टाइम्स ऑफ इंडिया ' ने दी है.
जस्टिस के एस राधाकृष्णन और जस्टिस ए के सीकरी की बेंच ने कहा कि किसी महिला का न्यूड या सेमी न्यूड चित्र तब तक अश्लील नहीं कहा जा सकता है जब तक वह सेक्स की इच्छा को न जगाए या वैसा अहसास कराए.
बेंच ने दो प्रकाशन संस्थाओं के खिलाफ इन धाराओं के तहत चल रहे मुकदमे को खारिज करते हुए यह विचार व्यक्त किया. उन पत्रिकाओं ने प्रसिद्ध जर्मन टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर और उनकी मंगेतर फिल्म ऐक्ट्रेस बारबरा फेल्टस की न्यूड तस्वीर छापी थी. यह चित्र जर्मन पत्रिका स्टर्न ने पहले प्रकाशित की थी और इन्हें रेसिज्म के खिलाफ बेकर की आवाज़ बुलंद करने के लिए छापा गया था.
जस्टिस राधाकृष्णन ने कहा कि कोई चित्र अश्लील है या नहीं, इसका फैसला करने के लिए अदालतों को उसकी प्रासंगिकता और राष्ट्रीय मानदंड को समझना होगा न कि मुट्ठी भर असंवेदनशील तथा झुक जाने वाले लोगों के मानदंड को.
बेंच ने कहा कि चित्र में कई चीजें देखनी होंगी और यह निर्भर करेगा अलग-अलग तरह के पोस्चर और पृष्ठभूमि पर जिनमें वह चित्र लिया गया है. सिर्फ वही सामग्री जो सेक्स से संबंधित हो और जो वासनात्मक भावनाओं को भड़काने की प्रवृति रखता हो, अश्लील कहे जा सकते हैं. अदालत ने यह भी कहा कि हम 2014 में हैं न कि 1994 में.