जो परंपरा खुशियों की जगह दहशत फैलाए, जो परंपरा खूबसूरती की जगह घृणा फैलाए, जो परंपरा बच्चों को हंसाने की जगह रुलाए हम उसे परंपरा कैसे कहेंगे. कर्णाटक में एक ऐसी परंपरा है जो बच्चों की जान से खेलता है.
कर्नाटक के बीजापुर में परंपरा के नाम पर करीब 16 से 20 फीट की उंचाई से दुधमुहे बच्चे को नीचे फेंका जाता है. डर के मारे बच्चे रोते बिलखते हैं पर यहां अंधविश्वास का ऐसा शोर रहता है कि बच्चों के रोने की आवज़ दब जाती है. हैरानी की बात ये है कि ये सब होता है माता पिता की मर्जी से. बीजापुर के श्री संथेश्वर मंदिर में ये परंपरा सालों से चली आ रही है.
मान्यता है कि 14वीं शताब्दी के इस मंदिर में हर मुराद पूरी होती है. बच्चे की मन्नत मांगने वाले माता पिता मुराद पूरी होने पर इस परंपरा का पाखंड निभाते हैं. माना जाता है कि इससे बच्चा स्वस्थ्य रहता है और जिंदगी भर समृद्ध रहता है. हैरानी की बात ये है कि इसमें जोखिम जानते हुए भी प्रशासन ने कभी इसपर रोक लगाने की कोशिश नहीं की. सबसे बड़ा सवाल यही है कि परंपरा के नाम पर यूं बच्चों की जिंदगी दांव पर लगाने का अधिकार किसने दिया. क्या मां बाप को बच्चों की जिंदगी ऐसे जोखिम में डालने का कोई अधिकार है.