प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज जब प्रेस से मुखातिब हुए तो अपने प्रदर्शन को आंकने का जिम्मा इतिहास पर छोड़ दिया और कहा कि अगर नरेंद्र मोदी देश के पीएम बने तो यह विनाशकारी होगा. पीएम के इन बातों का जवाब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने चुन-चुनकर दिया. उन्होंने पीएम के इतिहासकार वाले बयान का जमकर मखौल उड़ाया और यूपीए-2 को हर मोर्चे पर विफल बताते हुए अरुण जेटली ने कहा कि बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के पैमाने ले लिए जाएं तो यह सरकार तो पूरी तरह से विफल रही.
यह कहा अरुण जेटली ने...
उनके रिटायरमेंट के ऐलान के अलावा बाकी प्रेस कॉन्फ्रेंस एक औपचारिकता थी. अगर हम उनके कहे के असली मंतव्य की बात करें तो प्रधानमंत्री ने यह स्वीकार किया है कि उनकी सरकार करप्शन के मुद्दे पर फेल हो गई. उन्होंने स्वीकार किया कि यूपीए2 रोजगार नहीं दे पाई. उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार महंगाई के मुद्दे पर नाकाम रही.
अब किसी भी शासन के ये तीन पैमाने ले लिए जाएं, जिसमें बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार है, तो सरकार तो पूरी तरह से विफल रही. ये सत्यानाश की निशानी है. लेकिन फिर भी उन्होंने अच्छा शासन दिया, इसके लिए वह तर्क ढूंढ़ते रहे. सबसे विचित्र तर्क था कि जब पूछा गया कि आपकी सरकार भ्रष्टाचार के मामले में सफल नहीं हो पाई या कौन सा ऐसा कदम था, जो आपको लेना चाहिए था. मगर नहीं लिया. तो सच में उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए था. कोल ब्लॉक या 2जी आवंटन के समय लोग उनको बार-बार कह रहे थे कि करप्शन हो रहा है, तो वह रोक सकते थे. मगर उन्होंने परवाह नहीं की. उन्होंने आज एक नए तर्क का निर्माण किया. और ये नया तर्क था, कि भ्रष्टाचार यूपीए1 में हुआ और उसके बाद 2009 का चुनाव जीत गए. तो सरकार चुनावी स्वीकृति को अपने भ्रष्टाचार से बरी होने का आधार बनाया जा रहा है.
आज की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का सबसे अधिक इस्तेमाल किया वाक्य क्या था. इतिहासकार तय करेंगे कि मैंने कैसा काम किया. और दूसरा वाक्य था कि समय ही बताएगा. अब लोकतंत्र में इन तर्कों के क्या मायने हैं. 2009 के चुनाव परिणाम ने उनको करप्शन के आरोप से मुक्त कर दिया और अभी जो चुनाव परिणाम उनके खिलाफ गए, क्या वो उनकी सरकार की विफलता पर मुहर नहीं लगाते हैं.
आज प्रधानमंत्री मीडिया और विपक्ष से बहुत कड़वाहट पाले दिख रहे थे. उसमें भी नरेंद्र मोदी से तो बहुत ज्यादा खफा थे. अब अगर उन्हीं का तर्क ले लिया जाए कि 2009 के चुनाव परिणाम से 2जी और कोयला का करप्शन मिट गया, तो इसी तर्क से मोदी जी भी चुनाव जीतने के बाद दोष मुक्त हो जाते थे. मगर मोदी ने सिर्फ इसी वजह से खुद को दोष मुक्त नहीं कहा.
1947 से आज तक इस देश का दूसरा कोई राजनीतिक नेता नहीं है, जिसे इतनी स्क्रूटनी से निकलना पड़ रहा हो.सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई जांच में भी वह बेदाग निकले हैं. और दंगों की बात चली है तो ध्यान रहे कि जब मनमोहन सिंह दिल्ली से चुनाव लड़े थे, जो वह हार गए थे, उसमें उन्होंने प्रचार के दौरान कहा था कि आरएसएस ने 1984 के दंगे करवाए थे.
ये पीएम की फेयरवेल प्रेस कॉन्फ्रेंस थी. इस दौरान उन्होंने अपने पद की गरिमा के खिलाफ कई बयान दिए. जिस ईमानदारी से उन्हें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए था.