scorecardresearch
 

नेतन्याहू की मेजबानी के बाद 10 फरवरी को फिलीस्तीन पहुंचेंगे PM मोदी

मोदी का यह दौरा भारत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन कयासों को खत्म करने में सरकार को मदद मिलेगी, जिनमें कहा जा रहा था कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ भारत की फिलीस्तीन नीति बदल गई है.

Advertisement
X
फिलीस्तीन के राष्ट्रपति के साथ PM मोदी (फाइल फोटो)
फिलीस्तीन के राष्ट्रपति के साथ PM मोदी (फाइल फोटो)

Advertisement

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मेजबानी के बाद 10 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलीस्तीन के रामल्ला पहुंचेंगे, जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला फिलीस्तीन दौरा होगा.

पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इजरायल दौरा भी किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा था, इसके बाद मोदी के फिलीस्तीन दौरे को दोनों देशों के साथ भारत के रिश्ते को अलग-अलग करने के तौर पर देखा जा रहा है, जोकि पहले से चली आ रही परंपरा के ठीक उलट है. भारत लंबे समय तक इस क्षेत्र में अपने रिश्ते को बैलेंस करता रहा है.

मोदी का यह दौरा भारत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन कयासों को खत्म करने में सरकार को मदद मिलेगी, जिनमें कहा जा रहा था कि 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ भारत की फिलीस्तीन नीति बदल गई है.

Advertisement

हाल ही में येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में वोट करने को फिलीस्तीन पर भारत की पुरानी नीति को बरकरार रखने के तौर पर देखा जा रहा है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी के फिलीस्तीन दौरे के कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. नई दिल्ली स्थित सरकारी सूत्रों के मुताबिक जॉर्डन के अम्मान से मोदी हेलिकॉप्टर के जरिए फिलीस्तीन के रामल्ला जा सकते हैं. रामल्ला का वेस्ट बैंक शहर फिलीस्तीन की प्रशासनिक राजधानी है.

मोदी जिस रूट से रामल्ला जाएंगे, वह येरूशलम से सिर्फ आठ किलोमीटर की दूरी पर है. ऐसे में इजरायल और फिलीस्तीन के रिश्ते को अलग-अलग करके देख रही सरकार की नीति के संदर्भ में ये काफी महत्वपूर्ण है. ऐसी परिस्थितियों में मोदी के लिए इजरायल को छोड़ना आसान होगा, जैसा कि उन्होंने इजरायल दौरे के समय फिलीस्तीन के साथ किया था.

बता दें कि भारतीय प्रधानमंत्री के इजरायल दौरे के समय मोदी के रामल्ला न जाने से फिलीस्तीन में काफी निराशा का भाव था. रामल्ला स्थित फिलिस्तीन सेंटर फॉर पॉलिसी एंड रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर खलील शिकाकी ने पिछले साल भारतीय पत्रकारों और नेताओं के एक समूह से कहा था कि भारत के रुख को लेकर फिलीस्तीन में काफी चिंता का भाव है, जोकि 1947 से चली आ रही अपनी नीति से हट रहा है.

Advertisement

शिकाकी ने कहा था, 'भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री सुरक्षा और पश्चिम के साथ अपने रिश्ते में ज्यादा रुचि ले रहे हैं. फिलीस्तीन को अब लगने लगा है कि उनके पास भारत का समर्थन नहीं है.'

संयुक्त राष्ट्र में येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमेरिकी प्रस्ताव के खिलाफ वोट करके और अब प्रधानमंत्री मोदी के रामल्ला दौरे से सरकार यह बताना चाह रही है कि इजरायल के साथ भारत के रिश्ते फिलीस्तीन की कीमत पर नहीं बनेंगे. मोदी सरकार इस बात को लेकर बेहद सचेत है कि एक लंबे समय तक फिलीस्तीन का समर्थन भारत की विदेश नीति का अहम हिस्सा रहा है.

बता दें कि नेतन्याहू के साथ मोदी के दो संयुक्त बयानों में इजरायल-फिलीस्तीन संघर्ष के मुद्दे पर भारत के परंपरागत 2 स्टेट सोल्यूशन का कोई जिक्र नहीं है. हालांकि सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वह पुराने रुख पर कायम है या नहीं.

पिछले साल एक इजरायली अखबार को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा था कि इजरायल और फिलीस्तीन के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए भारत 2 स्टेट सोल्यूशन में विश्वास करता है. मई 2017 में फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास के भारत दौरे के समय भी प्रधानमंत्री ने यही बात दोहराई थी.

Advertisement
Advertisement