अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी दलों के सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुख उम्मीद के मुताबिक हमलावर रहा. लेकिन राजनीति के माहिर प्रधानमंत्री मोदी बड़ी महीनी से कांग्रेस के सहयोगी दलों मे कांग्रेस के प्रति अविश्वास पैदा करने की राजनीति भी खेल गए.
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होने पीएम को आंख से आंख मिलाने की बात कही थी. पीएम ने राहुल के इस बयान को कांग्रेस (नेहरू-गांधी परिवार) के अहंकार से जोड़ते हुए कहा कि आपसे (नेहरू-गांधी परिवार) आंख कौन मिला सकता है? नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कोशिश की थी. मोरारजी देसाई ने कोशिश की थी. चौधरी चरण सिंह ने किया था. कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी नेता शरद पवार ने किया था. जेडी(एस) नेता एच डी देवेगौड़ा ने किया था. प्रणब मुखर्जी ने भी किया था. सभी जानते हैं, इनका क्या हाल किया गया.
बता दें कि ये सभी वो नेता और दल हैं, जिन्होंने कांग्रेस नेतृत्व या यूं कहें नेहरू-गांधी परिवार को चुनौती दी है. एनसीपी का उद्भव ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ हुआ था. जब शरद पवार ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी बनाई थी. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी उम्मीद थी कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद पीएम की कुर्सी उन्हीं को मिलेगी. प्रणब मुखर्जी कांग्रेस से अलग भी हुए थे. लेकिन बाद में कांग्रेस में वापस आ गए. चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत सिंह की पार्टी रालोद आज कांग्रेस के साथ है. जेडी(एस) नेता एच डी देवेगौड़ा भी कांग्रेस के खिलाफ बने गठबंधन के दौरान ही देश के पीएम बने थे. लेकिन आज कर्नाटक में कांग्रेस के साथ जेडी(एस) सरकार चला रही है और उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को आगाह करते हुए कहा कि कांग्रेस डूब रही है और उसके साथ जो दल है उन्हें भी ले डूबेगी. दरअसल पीएम मोदी के खिलाफ विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की जो कवायद हो रही है, कांग्रेस उसकी धुरी बनती नजर आ रही है. कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान विपक्षी दलों का एक मंच पर आना इसकी तस्दीक कर चुका है. हाल ही में बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी पार्टी के उपाध्यक्ष को राहुल गांधी पर की गई टिप्पड़ी के लिए पार्टी से निकाल दिया था. क्योंकि मायावती यह नहीं चाहती थीं कि किसी भी वजह से सहयोगी दलों में खटास पैदा हो.
बहरहाल अविश्वास प्रस्ताव के बहाने लोकसभा में शुक्रवार को दिनभर चली बहस आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर रणनीतिक तैयारियों की झलक दे गया. जहां सबके तरकश में अपने-अपने तीर हैं, और सबकी अपनी डफली अपना राग है.