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इजराइल यात्रा पर यरुशलम को केन्द्र में रखेंगे प्रधानमंत्री मोदी?

इस यात्रा की तैयारी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इजराइल की यात्रा कर चुके हैं और फिलहाल विदेश मंत्रालय समेत केन्द्र सरकार के आधे दर्जन मंत्रालय इस यात्रा को सफल बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं.

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यरुशलम को केन्द्र में क्यों रखना चाहते हैं पीएम मोदी
यरुशलम को केन्द्र में क्यों रखना चाहते हैं पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विदेश यात्रा पर विधानसभा चुनावों के चलते लगा ब्रेक अब खत्म होने जा रहा है. इस हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी प्रस्तावित श्रीलंका यात्रा से खुद पर लगाए प्रतिबंध को खत्म करने जा रहे हैं. श्रीलंका से शुरू कर एक के बाद एक कई देशों का दौरा करने के लिए पीएम मोदी तैयार हैं. विदेश यात्रा के इस नए चरण में जहां प्रधानमंत्री मोदी की जून में अमेरिका यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात संभव है वहीं इस दौरान फ्रांस का दौरा कर वह नव नियुक्त राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन से भी मिल सकते हैं.

इन सबके बीच सबसे खास तैयारी जून-जुलाई के दौरान इजराइल की प्रस्तावित यात्रा के लिए की जा रही है. इस यात्रा की तैयारी के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इजराइल की यात्रा कर चुके हैं और फिलहाल विदेश मंत्रालय समेत केन्द्र सरकार के आधे दर्जन मंत्रालय इस यात्रा को सफल बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं.

क्यों अहम है इजराइल यात्रा

इजरायल धरती पर धर्म के लिहाज से सबसे पवित्र देश है. दुनिया के तीन धर्मों का यहां यरुशलम से नाता है. हालांकि राजनीति के हिसाब से इजराइल को दुनिया का सबसे खतरनाक क्षेत्र भी माना जाता है. वहीं भारत और इजराइल का संबंध बीते 25 सालों में मजबूत हुआ है लेकिन अभी तक देश का कोई प्रधानमंत्री इजराइल की यात्रा पर नहीं गया है. लिहाजा, इस यात्रा को कर प्रधानमंत्री मोदी इजराइल जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे.

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इजराइल और अमेरिका: जियोपोलिटकल एंगल
इजराइल की जियो पॉलिटिक्स के चलते हाल में हुए अमेरिकी चुनाव में जीत दर्ज करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने प्रचार के दौरान अहम वादा किया था. ट्रंप के दावे के मुताबिक राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वह इजराइल की राजधानी तेल अवीव में स्थित अमेरिकी एंबेसी को हटाकर धार्मिक शहर यरुशलम में स्थापित कर देंगे.

इजराइल यात्रा का मोदी एंगल
प्रधानमंत्री मोदी भी विदेश यात्रा के लिए राजनीतिक केन्द्रों के बजाय धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्रों को अहमियत देते हैं. ऐसा उनकी जापान यात्रा के दौरान पहली बार तब देखने को मिला जब वह राजधानी टोक्यो के बजाए धार्मिक राजधानी क्योटो पहुंचे. वहीं चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के दौरान उनका कार्यक्रम दिल्ली से शुरू होने के बजाए गुजरात में साबरमती आश्रम में कार्यक्रम से शुरू हुई. इसी तर्ज पर संभावना जताई जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी अपनी इजराइल यात्रा की शुरुआत राजधानी तेल अवीव के बजाए धार्मिक शहर यरुशलम से कर सकते हैं.

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अयोध्या बनाम यरुशलम
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की क्योटो यात्रा की अहमियत इसलिए बढ़ गई थी क्योंकि इस यात्रा पर उन्होंने क्योटो को अपने चुनाव क्षेत्र काशी से जोड़ने का काम किया. दोनों शहरों के बीच आपसी तालमेल के साथ-साथ केन्द्र सरकार ने काशी को क्योटो की तर्ज पर विकसित करने के लिए अहम समझौते किए. अब यरुशलम की स्थिति कुछ हद तक अयोध्या से मेल खाती है. यरुशलम में स्थित अल-¬अक्सा मस्जिद इस्लाम धर्म में मक्का और मदीना के बाद सबसे अहम तीर्थ है. वहीं इस मस्जिद के लिए आम धारणा है कि इसे यहूदी धर्म के सोलोमन मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. मौजूदा समय में इस मस्जिद पर फिलिस्तीन के इस्लामिक वक्फ का हक है. हालांकि यहूदी लोगों में आज भी इस स्थान को लेकर संवेदनाएं मौजूदा हैं लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए यहां आर्कियोलॉजिकल खुदाई कर स्थिति को साफ करने की कोशिश नहीं की गई है.

गौरतलब है कि इजराइल से मजबूत होते भारत के रिश्ते और प्रधानमंत्री मोदी का अंतरराष्ट्रीय संवाद में धर्म और संस्कृति को प्रमुखता से रखने की कोशिश के चलते यदि उनकी प्रस्तावित इजराइल यात्रा का केन्द्र राजधानी तेल-अवीव की जगह यरुशलम होता है तो कोई अचरज नहीं होगा. हालांकि मोदी इजराइल यात्रा के केन्द्र में यरुशलम को रखने की कवायद करते भी हैं तो इतना तय है कि वह अल अक्सा मस्जिद जाने से वह बचेंगे जिससे देश की एक बड़ी आबादी की संवेदनाओं को ठेस न पहुंचे.

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