बिहार चुनाव में मिली करारी हार की समीक्षा छोटे मोदी के यहां चल रही थी. चुनाव अभियान से दूर रखे गए शत्रु वहां भी नदारद थे. सीपी, हुकुम, पांडे सभी पहुंच चुके थे. सबकी यही राय थी- अब शत्रु नहीं आएंगे. हम सब खुद ही चुनावी हार की समीक्षा कर लें और पीएमओ को फैक्स कर दें, क्योंकि सभी रिपोर्ट पार्टी कार्यालय की जगह पीएमओ को ही फैक्स करने होते हैं. शासन हो या पार्टी सेंट्रल कमान एक ही है.
बात चल ही रही थी कि शत्रु दनदनाते हुए कमरे में दाखिल हुए. किसी ने कहा, 'खामोश!' चारों ओर खामोशी पसर गई.
आते ही शत्रु ने कहा, 'मैंने हार का पता लगा लिया है. यह हार हमारे संघ प्रमुख की बयानबाजी या हमलोगों की गुटबाजी से नहीं हुई है. हार हुई है 'मन की बात' से.' शत्रु की बात चौंकाने वाली थी. इस मुद्दे पर तो किसी का ध्यान ही नहीं गया था. शत्रु ने जो रिपोर्ट तैयार की थी सामने रख दी. शत्रु की रिपोर्ट में बड़ी-बड़ी बातें छोटे-छोटे प्वाइंट में तरतीबवार रखी गई थीं.
1. जमीन अधिग्रहण बिल
हमारी हार की कहानी उसी दिन शुरू हो गई जब हम जमीन अधिग्रहण बिल पर अपनी खूबियां गिनाना रेडियो पर शुरू किए. अब जिनको पता भी नहीं था उन्हें भी जमीन अधिग्रहण के विषय में पता चल गया. यह भी कोई रेडियो से घोषणा करने की चीज थी. मन की बात मन में ही रखते. संसार को बता दिया तो संसार ने ठुकरा दिया.
तस्वीरों में देखें, बिहार में किन दिग्गजों की हुई हार
2. जुमला ले डूबा
माना कि हमने कहा था, 'काला धन आया तो आप सबों के बैंक खाते में पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपये आ जाएंगे' लेकिन इस बात को कहने की क्या जरूरत थी कि यह एक 'चुनावी-जुमला' था. अब यह बात विरोधी भी जान गए हैं. वादा पूरा नहीं हुआ तो चुनावी जुमला. और अगर पूरा हो गया तो जो कहा वो किया. हालांकि, इसकी शुरुआत हमारी पार्टी ने की तो कॉपीराइट हमारे पास होना चाहिए, लेकिन 'मोटा भाई' ने मंच से घोषणा कर इसे सार्वजनिक कर दिया.
3. दिल्ली की हार
देश जीत लिया तो दिल्ली भी हमारी है. ऐसे कैसे हमारी है, भई? 'मन की बात' करने चले थे और सारी योजनाएं बता डाली. केजरी तैयार थे, लोकसभा की जीत का रहस्य उजागर होते ही तपाक से लपक बैठे. हम सोचते और समझाते रह गए और केजरी सीएम बन गए. यह सब मन-की-मानी से हुआ. न मन की कहते, न हारते.
अपनी रिपोर्ट पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए 'शॉटगन' बोले, 'जमीन, जुमला और दिल्ली में जमानत तक गंवाने के बाद भी मोटा भाई को बात समझ में नहीं आई. न सुने, न समझे- चले आए बिहार . यहां आने तक तो ठीक था, कम से कम वहां रेडियो बंद कर के आते. जब वाकई बोलना था तो खामोश हो गए, जब मुंह बंद रखना था तो लगातार बोलते रहे. सारे भेद खुलते गए. अब जब सब लुट गया तो बात समझ में आई. अब जाकर समझ आ रहा है कि हमें 'मन की बात' तो कुछ समय बाद करनी चाहिए थी. हमारे 'मन की बात' जानकर विरोधियों ने अपनी रणनीति बना ली और हम हारते चले गए.'
ऐसा होता तो वैसा होता
सभी 'खामोश' होकर शत्रु की बात सुन रहे थे. इतनी तवज्जो बड़े दिनों बाद नसीब हुई थी सो शत्रु अब कमी से आगे सुझाव की ओर बढ़े.
उन्होंने आगे कहा, 'रेडियो पर कुछ कहना ही था तो 'मन का मलाल' ज्यादा बेहतर होता जिस पर हमने सोचा तक नहीं. इसमें हम कांग्रेस की नाकामियां गिनाते और सारी वाहवाही मिलती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कितना मजा आता जब हम संसद में कही बातों को रेडियो पर कहते. कम से कम पूरे देश की जनता तक वह बात डायरेक्ट जाती. जैसे जनधन योजना से लोगों को इतना फायदा हो रहा है. जैसे एलपीजी की सब्सिडी वाली रकम सीधे बैंक खाते में जा रही है.'
वीडियो: बिहार में हार के बाद बीजेपी का बयान
बिहारी बाबू भावनाओं में बह रहे थे. उन्होंने आगे कहा, 'हमने मनरेगा के विषय में कहा था कि यह कांग्रेस की नाकामी है और इसे हम बनाए रखेंगे. जहां जाएंगे ढोल पीटकर इसकी पोल खोलेंगे. आधार कार्ड पैसे की बर्बादी है लेकिन इसको भी जारी रखेंगे. देश की जनता को बताएंगे. यह बात हमने संसद में कह कर उसे चारदीवारी में कैद कर दिया. अगर वही बात रेडियो पर करते तो ज्यादा असरदार होता. प्रोग्राम का नाम 'मन का मलाल' रखते. लोग चाव से सुनते और कांग्रेस की खिल्ली उड़ाते.
लेकिन सब उल्टा हो गया. हमारे मोटा भाई ने यह सब बताया ही नहीं. लगे रहे चाणक्य बनने में.'
शत्रु के मुख से बिहार में बाहरी की असफलता का गान सुनकर सब 'खामोश' थे. तभी शत्रु ने आखिरी दांव चला और बोले...
'हाथ से सूबेदारी निकलती रही और वो रणनीति बनाते रहे.'
'देर से ही सही, अब नहीं चूकेंगे. अपनी रिपोर्ट के जरिए 'मन की बात' का नाम बदलने का प्रस्ताव देने जा रहा हूं. अब प्रत्येक रविवार को सुबह 10 बजे 'मन का मलाल' प्रोग्राम रेडियो पर आना चाहिए और मोटा भाई को कहूंगा कि वो नीतीश, लालू और राहुल को 'मन की बात' कहने के लिए मनाएं ताकि उनकी सारी रणनीति हमलोग जान सकें. है कि नहीं?'
शत्रु ने अपनी बात खत्म की तो हर ओर 'खामोशी' थी. सब सन्न. चुपचाप. वैसे कुछ आपस में मन ही मन यह भी कह रहे थे कि दिवाली बाद मोदी और बीजेपी का संसदीय बोर्ड अपने 'मन की बात' करेगी और क्या जाने फिर शत्रु हो जाएंगे 'खामोश'!
डिस्क्लेमरः बैठक के अंश पूर्णत: काल्पनिक हैं और ये लेखक के निजी विचार हैं.