प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के केवडिया में ट्रेनी IAS अफसरों को संबोधित करते हुए कहा कि आज भारत तेजी से बदल रहा है. कभी अभावों में चलनी वाली व्यवस्था आज विपुलता की तरफ बढ़ रही है. साथ ही उन्होंने कहा कि सिविल सेवाओं को लेकर अफसरशाही की रौब की एक छवि रही है. इस छवि को छोड़ने में कुछ लोग पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं. इस छवि को छोड़ने का पूरा प्रयत्न होना चाहिए.
सरदार पटेल और ब्यूरोक्रेसी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'ब्यूरोक्रेसी और सिस्टम आज दो ऐसे शब्द बन गए हैं जो अपने आप में नेगेटिव परसेप्शन बन गया है. आखिर ये हुआ क्यों? जबकि अधिकतर अफसर मेहनती भी हैं.' पीएम मोदी ने कहा, 'सरदार साहब ने ही याद दिलाया था कि ये ब्यूरोक्रेसी ही है जिसके भरोसे हमें आगे बढ़ना है, जिसने रियासतों के विलय में अहम योगदान दिया था. आज देश में विपुल युवा शक्ति, विपुल युवा भंडार और आधुनिक तकनीक है.'
'फैसलों को दो कसौटियों पर कसें ब्यूरोक्रेट्स'
उन्होंने कहा, 'सरदार पटेल ने दिखाया है कि सामान्य जन के जीवन में सार्थक बदलाव के लिए हमेशा एक बुलंद इच्छाशक्ति को होना जरूरी होता है.' अपने संबोधन में उन्होंने आगे कहा कि अपने सभी निर्णयों को दो कसौटियों पर जरूर कसना चाहिए. एक, जो महात्मा गांधी ने रास्ता दिखाया था कि आपका फैसला समाज के आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति की आशा, आकांक्षाओं को पूरा करता है या नहीं. दूसरा, आपका फैसला इस कसौटी पर कसा जाना चाहिए कि उससे देश की एकता, अखंडता को बढ़ावा मिले.
कंफर्ट जोन से बाहर निकलें
प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे फैसलों और नीतियों को लेकर जो फीडबैक आता है उसका ईमानदार आकलन जरूरी है. ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो हमारी आंखों और कानों अच्छा लगे, वही देखना और सुनना है. हमें फीडबैक प्राप्त करने के दायरे का विस्तार करने के साथ ही विरोधियों की बातों को भी सुनना चाहिए. हम किसी भी सर्विस में हों, हमें अपने कंफर्ट जोन से बाहर आकर लोगों से जुड़ना बहुत आवश्यक है. इससे हमें सही नीतियों से संबंधित निर्णय लेने में बहुत मदद मिलेगी.
ईज ऑफ लिविंग को बढ़ाएं
प्रधानमंत्री ने कहा, आज पूरे भारत में हम देख रहे हैं कि नागरिक पहले से ज्यादा जागरूक हैं, संवेदनशील हैं. सरकार कोई भी मदद मांगे, एक आवाज लगाए या किसी मुहीम में शामिल होने को कहे तो लोग खुशी-खुशी उसमें शामिल हो जाते हैं. इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है हम देशवासियों की ईज ऑफ लिविंग को बढ़ाएं. हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि सामान्य नागरिक को रोजमर्रा की चीजों से जूझना न पड़े. हमें ये ध्यान रखना होगा कि सामान्य मानवी की जिंदगी सरकार के प्रभाव में दब न जाए और गरीब की जिंदगी सरकार के अभाव में दम न तोड़ दे.