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हिंदी भाषा पर संघ से अलग हैं PM मोदी के विचार

भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में हिंदी को लेकर जो खुलापन दिखाया, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और यहां तक कि बीजेपी के पारंपरिक मत से एकदम अलग नजर आया.

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हिंदी को लेकर PM मोदी का नजरिया एकदम खुलापन लिए है
हिंदी को लेकर PM मोदी का नजरिया एकदम खुलापन लिए है

भोपाल के लाल परेड ग्राउंड पर तीन दिवसीय 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में हिंदी को लेकर जो खुलापन दिखाया, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और यहां तक कि बीजेपी के पारंपरिक मत से एकदम अलग नजर आया.

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बीजेपी की पुरानी सोच और मोदी के नए तरीके का फर्क विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मोदी के भाषणों में इस्तेमाल हिंदी भाषा के प्रयोग में साफ दिखाई दिया. सुषमा स्वराज का पूरा भाषण संस्कृतनिष्ठ हिंदी में था, जबकि मोदी अपने ही अंदाज में बोलचाल की भाषा बोल रहे थे. कभी इसी भाषा को महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने हिंदुस्तानी नाम दिया था.

मोदी ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि हिंदी को दूसरी भाषाओं के शब्द अपने में समाहित करने में कोई गुरेज नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि भाषा हवा के उस झोंके की तरह है, जो अपने साथ स्थान और परिवेश को भी आगे ले जाती है. भाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ना होगा और नए समय की मांग पर खरा उतरना होगा. दूसरी ओर संघ की विचारधारा और पठन-पाठन की शैली में हमेशा से संस्कृतनिष्ठ भाषा का बोलबाला रहा है. मोदी अपनी मतभिन्नता को उस स्तर तक ले गए कि उन्होंने कहा कि अगर भाषा ने अपने दरवाजे बंद कर लिए, तो वह डायनासोर की तरह लुप्त हो जाएगी. मोदी ने आगाह किया कि बाजार को हिंदी की दरकार है. हिंदी वालों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए.

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अगर मोदी और कुछ हद तक मुख्यमंत्री शि‍वराज सिंह चौहान के वक्तव्य को छोड़ दें, तो कार्यक्रम की बाकी भाषा और पाठ सामग्री में क्लिष्ठ हिंदी या संघ की भाषा में शुद्धतावादी हिंदी का जोर दिखाई दिया. यह होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में बीजेपी सांसद और संघ के कट्टर कार्यकर्ता अनिल माधव दवे की मुख्य भूमिका है. भाषा के इस्तेमाल में सबसे ज्यादा गजब विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने किया. सिंह ने हाल ही में बयान दिया था कि सरकारी हिंदी ने हिंदी की दुर्दशा की है. लेकिन वे खुद संरक्षण जैसे सीधे शब्द का इस्तेमाल करने के बजाय संरक्षकता जैसे शब्दकोष से बाहर के शब्दों का इस्तेमाल धन्यवाद ज्ञापन में करते रहे.

मंच पर कोई हिंदी लेखनी नहीं
विश्व हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन कार्यक्रम की एक खासियत यह भी रही कि मंच पर किसी साहित्यकार, कवि या कलाकार को कुर्सी नहीं मिली. प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इस बात से बाखबर थे और इसके पक्ष में उनकी दलील थी कि यह साहित्य का नहीं, भाषा का सम्मेलन है. लेकिन इस तर्क से यह बात गले नहीं उतरती कि आखिर हिंदी भाषा का सारा विकास क्या नेताओं को ही करना है, जो वही लोग मंच पर आसीन नजर आए.

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गौरतलब है कि 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागपुर में जब पहले विश्व हिंदी सम्मेलन की नींव डाली थी, तो उसमें मुख्य भाषण कवयित्री महादेवी वर्मा का हुआ था.

इन सब वजहों के चलते देश की स्थापित साहित्य बिरादरी इस आयोजन का बहिष्कार कर रही है.

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