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मनमोहन के पास नहीं थे अधिकार, रोज होते थे अपमान के शिकार, पूर्व कोयला सचिव पीसी परख का दावा

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब से उठा सियासी भूचाल अभी थमा भी नहीं था कि पूर्व कोयला सचिव पीसी परख ने भी अपनी किताब में प्रधानमंत्री पर सवाल उठा दिए हैं. उन्होंने कहा है कि मनमोहन सिंह एक ऐसी सरकार के मुखिया थे जिसमें उन्हें बहुत कम राजनीतिक अधिकार हासिल थे और वह मंत्रियों को कंट्रोल करने में नाकाम थे.

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P C Parakh
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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब से उठा सियासी भूचाल अभी थमा भी नहीं था कि पूर्व कोयला सचिव पीसी परख ने भी अपनी किताब में प्रधानमंत्री पर सवाल उठा दिए हैं. उन्होंने कहा है कि मनमोहन सिंह एक ऐसी सरकार के मुखिया थे जिसमें उन्हें बहुत कम राजनीतिक अधिकार हासिल थे और वह मंत्रियों को कंट्रोल करने में नाकाम थे.

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दिसंबर 2005 में रिटायर हुए पूर्व कोयला सचिव परख की किताब 'क्रुसेडर ऑर कांसपीरेटर? कोलगेट एंड अदर ट्रुथ्स' सोमवार को रिलीज हुई. परख ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में सांसदों को ब्लैकमेलर बनते देखा है. उनके मुताबिक कोल ब्लॉक आवंटन पर उनके सुझावों को तवज्जो नहीं दी गई. उन्होंने बताया, 'हम ऐसे हालात में पहुंच गए थे, जहां मुख्य सचिव भी नेताओं का गुलाम बनने को मजबूर किए जाते थे. मेरी किताब हमारी राजनीतिक व्यवस्था में आई गिरावट के बारे में है.'

'PM ने कहा था रोज होता हूं अपमान का शिकार' परख एक घटना याद करते हैं जब वह तब के कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी को इस्तीफा देने के बाद प्रधानमंत्री से मिलने गए थे. परख ने बताया है कि उन्होंने इसलिए इस्तीफा दिया था क्योंकि बीजेपी सांसद धर्मेंद्र प्रधान ने स्टैंडिंग कमेटी की बैठक के दौरान उनका अपमान किया था और इस पर सरकार की ओर से कोई सुनवाई नहीं हुई.

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17 अगस्त 2005 को मैं औपचारिक विदाई के तौर पर प्रधानमंत्री से मिला. मैं उनसे उस अपमान के बारे में बात करना चाहता था जो सांसद अकसर नौकरशाहों के साथ करते हैं. इस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वह यही समस्या हर रोज झेलते हैं. लेकिन अगर वह ऐसी हर बात पर इस्तीफा देने लगें तो यह देश हित में नहीं होगा.'

पूर्व कोयला सचिव ने लिखा है कि वह नहीं जानते कि मनमोहन के इस्तीफा देने की सूरत में भारत को बेहतर प्रधानमंत्री मिलता या नहीं. उनके मुताबिक, 'अपनी सरकार में उनके पास बहुत कम राजनीतिक अधिकार थे. 2जी और कोयला घोटाले से उनकी छवि को भी धक्का लगा था, हालांकि व्यक्तिगत रूप से उनका बेदाग रिकॉर्ड था.'

पूर्व कोयला सचिव ने सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से पूछा कि हिंडाल्को को ओडिशा की जिस तालाबीरा कोयला खदान आवंटन मामले में उनके खिलाफ केस दर्ज किया गया है, उसमें पीएम के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई. उनके मुताबिक, तालाबीरा कोल ब्लॉक के आवंटन का फैसला मनमोहन सिंह ने ही बतौर कोयला मंत्री लिया था. परख का आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट को प्रभावित करने और पिंजरे में बंद तोता की छवि से उबरने की कोशिश के तहत ही रंजीत सिन्हा ने उनके खिलाफ कार्रवाई की है.

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उन्होंने आरोप लगाया है कि सीबीआइ उनका शिकार करना चाहती है और सिन्हा ने नियम-कानून ताक पर रखकर उनके खिलाफ कार्रवाई की है. बकौल परख, अगर सिन्हा मानते हैं कि तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक हिंडाल्को को एक साजिश के तहत आवंटित किया गया तो इस मामले में प्रधानमंत्री को भी नामजद करने का उनके अंदर साहस होना चाहिए.

गौरतलब है कि ओडिशा की तालाबीरा कोल ब्लॉक हिंडाल्को को आवंटित करने के मामले में सीबीआई ने परख के खिलाफ केस दर्ज किया है. आरोप है कि हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटन में परख ने पक्षपात किया है. अपनी पुस्तक में परख ने जांच एजेंसी के इस कदम पर सवालिया निशान लगाया है. उन्होंने सवालिया अंदाज में पूछा, अगर सीबीआई को इस मामले में साजिश और भ्रष्टाचार की बू आई तो उसने पीएम के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं की.

परख के अनुसार, किसी भी सचिव मंत्री का काम केवल सिफारिश करना है. इस पर अंतिम फैसला लेना मंत्री का काम है. उन्होंने सवाल किया कि उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज करने से पूर्व सीबीआइ ने पीएमओ की फाइलों की जांच क्यों नहीं की. हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंडाल्को को कोल ब्लॉक आवंटन के मामले में पीएमओ ने उन पर कोई दबाव नहीं डाला.

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