चुनावी भाषणों से लेकर हर मौके पर कांग्रेस सूचना के अधिकार (आरटीआई) को अपनी बड़ी उपलब्धि बताती रही है, लेकिन एक तथ्य ये भी है कि आम आदमी को ताकत देने वाली आरटीआई को खारिज करने में यूपीए शासन के दौरान पीएमओ भी टॉप रिजेक्टर्स में शामिल रहा है. आरटीआई खारिज करने के मामले में वित्त मंत्रालय टॉप पर है.
केंद्रीय सूचना आयोग की 2013-14 रिपोर्ट के मुताबिक, आरटीआई खारिज करने के मामले में पीएमओ के अलावा कई और मंत्रालय भी शामिल रहे. अंग्रेजी अखबार 'द इकोनॉमिक टाइम्स' की खबर के मुताबिक, कॉर्पोरेट अफेयर मंत्रालय ने साल 2013-14 के दौरान आरटीआई के 28.85 फीसद आवेदनों को खारिज किया.
प्रधानमंत्री कार्यालय ने 20.49 फीसदी, वित्त मंत्रालय ने 19.16 फीसद आरटीआई आवेदनों का खारिज किया. इस लिस्ट में गृह, ऊर्जा मंत्रालय, कैबिनेट सचिवालय, पर्सनल और डिफेंस मंत्रालय, हाउसिंग और पेट्रोलियम नैचुरल गैस मंत्रालय भी शामिल है.
इस आंकड़े के मुताबिक, बीते तीन सालों में आरटीआई खारिज
करने के मामले में परिवर्तन आया है. याद रहे कि आरटीआई का कानून यूपीए-1 के दौरान लागू किया गया था. यूपीए मई 2014 तक मोदी सरकार बनने तक सत्ता में रही थी. यह आंकड़ा भी यूपीए सरकार के दौरान का ही है.