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PMO की भूल की वजह से हुई थी अन्ना व केजरीवाल की राहें जुदा!

अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की राह किस तरह जुदा हो गई, यह तो पूरे देश ने देखा. पर कई रहस्यों से अभी तक पर्दा पूरी तरह नहीं उठा है. उन दोनों के बीच अलगाव की एक वजह यूपीए के कार्यकाल के दौरान PMO की एक छोटी-सी भूल भी हो सकती है.

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अन्ना हजारे (फाइल फोटो)
अन्ना हजारे (फाइल फोटो)

अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की राह किस तरह जुदा हो गई, यह तो पूरे देश ने देखा. पर कई रहस्यों से अभी तक पर्दा पूरी तरह नहीं उठा है. उन दोनों के बीच अलगाव की एक वजह यूपीए के कार्यकाल के दौरान PMO की एक छोटी-सी भूल भी हो सकती है. अन्ना ने दी मोदी को धमकी

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एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, यूपीए सरकार में तब के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने अन्ना हजारे के साथ पुणे में एक गुप्त बैठक की थी. इस बैठक के बाद PMO ने अन्ना के नाम एक चिट्टी भेजी, जो भूल से अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचा दी गई. हालांकि अन्ना ने खुद ही अपने पत्राचार के पता के तौर पर केजरीवाल के घर का पता दिया था. पर तब PMO को इस बात का आभास नहीं था कि इस तरह की गोपनीय चिट्ठी सीधे अन्ना हजारे के गांव के पते पर भिजवाई जानी चाहिए.

जब अरविंद केजरीवाल को खुर्शीद के इस 'मिशन' की जानकारी मिली, तो वे सतर्क हो गए. तब उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार पर आरोप लगाया था कि वह उनके और अन्ना हजारे के बीच दरार डालने की कोशिश कर रही है. दरअसल, चिट्ठी से जाहिर हो रहा था कि खुर्शीद ने अन्ना हजारे को साल 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने के लिए मना लिया था. चिट्ठी में अन्ना को इसके लिए धन्यवाद दिया गया था. पर केजरीवाल के घर चिट्ठी पहुंचने से सारा मामला बिगड़ गया.

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जहां तक सलमान खुर्शीद की बात है, जब उन्हें इस भूल का पता चला, तो एकदम सन्न रह गए. इसके बावजूद उन्होंने इस बात से इनकार किया कि उन्होंने अन्ना के साथ किसी तरह की गुप्त मीटिंग की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, अन्ना ने खुद ही खुर्शीद को सुझावा दिया था कि अगर मीडिया में इस तरह की जानकारी लीक हो जाए, तो वे मीटिंग की बात से साफ मुकर जाएं और 'देशहित में' झूठ बोल दें. अन्ना के साथ पुणे में उस दौरान किरन बेदी भी थीं. अन्ना ने उनसे भी जानकारी छुपाई थी. उन्होंने किरन बेदी से कहा था कि वे एक संत से मिलने जा रहे हैं, जो उनसे अकेले ही मिलना चाहते हैं.

मीटिंग में खुर्शीद ने अन्ना के सामने सरकार का पक्ष रखा. उन्होंने अन्ना को केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के बारे में आगाह किया. अन्ना उस वक्त सरकारी लोकपाल बिल से संतुष्ट थे, जब केजरीवाल ने उसे 'जोकपाल' करार दिया था. यहीं से दोनों की राहें जुदा होती गईं.

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