इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दुबे ने बहुचर्चित PNB घोटाले में नया खुलासा किया है. दुबे ने दावा किया है कि साल 2013 में यूपीए सरकार अगर चेत जाती तो आज नीरव मोदी से जुड़ा ये पीएनबी घोटाला नहीं हुआ होता. उनका दावा है कि ये घोटाला यूपीए सरकार से चला आ रहा है, आज 10 से 50 गुना तक बढ़ गया है.
दिनेश दुबे की मानें तो देश के बैंकिंग क्षेत्र को हिला देने वाले पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी. नई दिल्ली में हुई उस बैठक में गीतांजलि ज्वेलर्स के मालिक मेहुल चौकसी को 550 करोड़ रुपये देने की मंजूरी दी गई थी. मेहुल चौकसी रिश्ते में घोटालेबाज नीरव मोदी का मामा है. बाद में मामा-भांजे ने मिलकर बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाया. चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान किया गया था.
I had sent a dissent note against #GitanjaliGems to the Govt and RBI in 2013 but to no avail, I was directed that this loan has to be approved, I was being pressurized so I resigned: Dinesh Dubey,former Allahabad Bank Director pic.twitter.com/yMqxiYWw7X
— ANI (@ANI) February 16, 2018
RBI की दी जानकारी
दिनेश दुबे के मुताबिक नई दिल्ली के होटल रेडिसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई. इस बैठक में दिनेश दुबे भी भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक की हैसियत से शामिल हुए. इस बैठक में दिनेश दुबे ने मेहुल चौकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया. 16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर केसी चक्रवर्ती और तत्कालीन वित्त सचिव राजीव टकरू को दी. इसके बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, लेकिन इसके बावजूद मेहुल चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया.
इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दुबे बताते हैं कि केंद्रीय वित्त सचिव और आरबीआइ को इस फैसले की भनक लगते ही हड़कंप मच गया था. उधर, बैंक के अधिकारी मेहुल चौकसी को सैकड़ों करोड़ देकर खुद भी करोड़ों रुपये डकारने में लगे थे, जिसके चलते मामला दब गया. दिनेश दुबे के मुताबिक जब उन्होंने चौकसी को लोन देने का विरोध किया तो उनपर दवाब बनाने से लेकर उन्हें धमकाने की भी कोशिश की गयी थी.