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अब पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के हथियार लूटना आसान नहीं होगा

हथियारों में ऐसे डिवाइस लगे होंगे जो सेटेलाइट और रेडियो फ्रीक्वेंसी के माध्यम लोकेशन की पूरी जानकारी अपने मुख्यालय को दे देंगे. नक्सल मोर्चे में तैनात लगभग पांच हजार जवानों के हथियारों पर पहली खेप में रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन ( आरएफआईडी ) लगाने की तैयारी चल रही है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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नक्सल विरोधी मोर्चे में तैनात केंद्रीय पुलिस संगठन के जवानों को जीपीएस सिस्टम से लैस हथियारों को मुहैया कराना केंद्र सरकार की अच्छी पहल के रूप में सामने आई. लेकिन जिस तेजी से यह खबर नक्सलियों के गढ़ तक पहुंची उससे केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अरमानों में पानी फिरने की आशंका बढ़ गई है. नक्सली बंदूकों में लगी जीपीएस सिस्टम की बारीकियों को समझने और उसका तोड़ निकालने में जुट गए हैं. इससे तो बेहतर होता कि जीपीएस सिस्टम से लैस नई राइफलों को मुहैया कराने के फैसले को काफी गोपनीय रखा जाता. नक्सलियों का तकनीकी दल इस बात से वाकिफ हो गया है कि लूटी गई राइफलें आने वाले दिनों में उनके लिए नई मुसीबत पैदा कर सकती हैं.

एक खुफिया खबर के मुताबिक छत्तीसगढ़ के नक्सल मोर्चे में तैनात CRPF, ITBP, BSF, CISF और SSB के जवानों के हथियार लूटकर भागना अब नक्सलियों के लिए आसान नहीं होगा. केंद्रीय गृह मंत्रालय सुरक्षा बलों को ऐसे हथियार देने की तैयारी में हैं जिसे खोने के बाद आसानी से ट्रेस किया जा सकता है. हथियारों में ऐसे डिवाइस लगे होंगे जो सेटेलाइट और रेडियो फ्रीक्वेंसी के माध्यम लोकेशन की पूरी जानकारी अपने मुख्यालय को दे देंगे. नक्सल मोर्चे में तैनात लगभग पांच हजार जवानों के हथियारों पर पहली खेप में रेडियो फ्रिक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन ( आरएफआईडी ) लगाने की तैयारी चल रही है.

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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसके लिए प्लान तैयार किया है. पहले चरण में नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी बढ़ाई जाएगी. फिर जवानों को आरएफआईडी से लैस हथियार उपलब्ध कराए जाएंगे. लिहाजा पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के अलावा दूरसंचार विभाग ने पूरा फोकस मोबाइल कनेक्टिविटी पर लगा दिया है. इन दिनों नारायणपुर, कोंटा, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में मोबाइल टॉवर लगाने का काम जोरों पर चल रहा है. इन इलाकों में सबसे बड़ी दिक्कत कमजोर मोबाइल नेटवर्क और कनेक्टिविटी की है. मौजूदा दौर में इन इलाकों में इंटरनेट सिर्फ ख्वाब है जबकि मोबाइल में बात करने के लिए लोगों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होता है. आम लोग हों या सुरक्षा बलों के जवान आपसी बातचीत के लिए उन्हें पेड़ों और पहाड़ियों पर चढ़ना होता है तब जाकर मोबाइल में नेटवर्क आता है.

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