देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली की सड़कों पर हुए कत्लेआम के खिलाफ सख्त कदम उठाने से शीर्ष पुलिस अधिकारियों को रोका गया था. एक नई किताब में यह दावा किया गया है.
किताब के मुताबिक, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त मैक्सवेल परेरा ने नाटकीय ढंग से पुलिस कार्रवाई के आदेश दिए. उन्होंने एक नवंबर की सुबह गुरुद्वारा शीशगंज के बाहर गोलीबारी के आदेश दिए थे. परेरा ने पत्रकार और लेखक संजय सूरी को किताब '1984- द एंटी सिख वायलेंस एंड आफ्टर (हार्पर कॉलिन्स)' में बताया है कि इस गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, लेकिन इसमें ऐतिहासिक गुरुद्वारे को बचा लिया गया था. लेकिन इस दौरान जो हुआ, उससे परेरा हिल गए. किताब का गुरुवार को विमोचन किया गया.
परेरा के मुताबिक, 'घटना के बाद मैंने तुरंत नियंत्रण कक्ष को सूचित किया कि मैंने गोली चला दी है. एक व्यक्ति की मौत हो गई है. यह महत्वपूर्ण है. विशेष रूप से जब आपने गोली चलाई हो तो आपको नियंत्रण कक्ष को सूचित करने की जरूरत है. मुझे नियंत्रण कक्ष से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली .'
उस समय मध्य जिले के उपायुक्त आमोद कंठ के मुताबिक, पुलिस मुख्यालय की ओर से इस हिंसा से निपटने के लिए कोई निर्देश नहीं थे. कंठ ने अपने जिले में सख्त आदेश दिए थे, जिसके लिए उनकी बाद में पुलिस मुख्यालय में निंदा हुई थी.
एक अन्य घटना में दिल्ली सशस्त्र बल के एक इंस्पेक्टर ने पूर्व दिल्ली के नंद नगरी में हमलावरों को डराने के लिए हवा में गोली चलाई थी. पुलिस उपायुक्त के हवाले से बताया गया है कि उस इंस्पेक्टर को यह बताया गया था कि इस तरह की कार्रवाई के लिए वह मुश्किल में पड़ जाएगा.
सूरी ने अपनी किताब में कहा है कि राजीव गांधी ने 31 अक्टूबर की शाम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. इस दिशा में उनका सबसे कड़ा निर्देश दो नवंबर की शाम 5:30 बजे आया, जब उन्होंने तत्कालीन उपराज्यपाल पीजी गवई को तलब कर कहा कि सभी हत्याएं 15 मिनट के अंदर बंद होनी चाहिए. इसके बाद हत्या की वारदातें लगभग बंद हो गईं.
-इनपुट IANS से