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फुर्तीली बीजेपी और हमलावर केजरीवाल, क्या होगा अंजाम

अगर रोमांच की बात की जाए तो दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने टी-20 क्रिकेट को भी पीछे छोड़ दिया है. वोट पड़ने से तीन हफ्ते पहले ही दिल्ली में हर घंटे चुनावी बिसात जिस तेजी से बदल रही है, उससे दिल्ली के वोटरों के अलावा बाकी देश के तमाशबीनों को भी बड़ा मजा आ रहा है.

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मोदी और केजरीवाल
मोदी और केजरीवाल

अगर रोमांच की बात की जाए तो दिल्ली के विधानसभा चुनावों ने टी-20 क्रिकेट को भी पीछे छोड़ दिया है. वोट पड़ने से तीन हफ्ते पहले ही दिल्ली में हर घंटे चुनावी बिसात जिस तेजी से बदल रही है, उससे दिल्ली के वोटरों के अलावा बाकी देश के तमाशबीनों को भी बड़ा मजा आ रहा है.

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जब चुनाव की बातें शुरू हो रही थीं, जब तक ऐसा माहौल था कि मोदी लहर पर सवार बीजेपी को बढ़त हासिल है और केजरीवाल की चुनौती लहर को थामने की है. लेकिन जल्द ही फिजा बदली, बीजेपी और आप दोनों की ही रणनीतियों से ऐसा लगा जैसे केजरीवाल की पार्टी का पलड़ा भारी है और मशक्कत करने की बारी बीजेपी की है. उसके बाद जब केजरीवाल ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय की कुंडली सार्वजनिक की तो लगा कि आप ने बाजी मार ली.

कुछ हद तक हुआ भी ऐसा ही. कल तक सबसे आगे नजर आने वाले उपाध्याय अचानक हाशिये पर चले गए और हालत यह हुई कि उन्हें विधानसभा का टिकट तक नहीं मिला. उन्होंने केजरीवाल पर मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की बात कही, लेकिन उनके दावे को ग्राहक नहीं मिले. चुनाव के शुरू में बीजेपी का नया चेहरा सा दिखने वाले उपाध्याय अब पार्टी पर बोझ नजर आ रहे हैं. इस हमले का जवाब कोई भी बड़ी और खासकर केंद्र और देश के अधिकांश राज्यों में जबरदस्त जीत हासिल कर रही पार्टी अपने अंदाज में देती. लेकिन बीजेपी ने बड़ी फुर्ती दिखाई. पार्टी अगले ही दिन पूर्व आइपीएस अफसर किरण बेदी को सामने लाई. पार्टी इस बात से नहीं हिचकी कि लोग क्या कहेंगे? क्योंकि यह सवाल तो उठना ही था कि आखिर लोकसभा चुनाव के बाद से सारे विधानसभा चुनाव बिना चेहरे के लड़ने वाली बीजेपी को दिल्ली में चेहरे की जरूरत क्यों पड़ी?

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क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मोदी के जिस चेहरे पर पूरे देश में पार्टी को भरोसा है वह दिल्ली में नाकाफी है. दूसरी तरह का सवाल यह है कि क्या पार्टी को दिल्ली में हार का डर सता रहा है? ऐसे में वह बीजेपी की हार को मोदी की हार के वजाय किरण बेदी या स्थानीय नेतृत्व की हार बताना चाहती है. अमित शाह के नेतृत्व वाली पार्टी की जगह कोई और पार्टी होती तो सत्ता के ऊंचे मुकाम पर पहुंचने के बाद इसी तरह की पारंपरिक सोच दिखाती, लेकिन अमित शाह बहुत फुर्तीले हैं. इसीलिए 19 जनवरी रात 11 बजे जब उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर किरण बेदी को बीजेपी का मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित किया तो पत्रकारों के इसी तरह के सवालों पर कहा, ‘‘पार्टी आपके सवालों से नहीं चलेगी. पार्टी का अच्छा बुरा हमें मालूम है.’’

जमीनी सचाई को देखकर रणनीति में बुनियादी बदलाव करने का यह सामथ्र्य कांग्रेस तब कभी नहीं दिखा सकी, जब वह सत्ता के शीर्ष पर थी. वक्त की नब्ज को न समझ पाने के कारण ही उसके क्षत्रप बिखरते रहे और देश में तीसरे मोर्चे की पार्टियों के फूल कांग्रेस के पुराने नेताओं ने खिला दिए. बीजेपी ने कांग्रेस के इतिहास से वह सबक बहुत जल्दी ले लिया जो अपने सबसे बुरे समय में भी कांग्रेस नहीं ले पा रही है.

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दूसरा काम बीजेपी ने यह समझदारी का किया कि आप की तमाम चुनौतियों के बावजूद किरण बेदी को कृष्णा नगर जैसी महफूज सीट से टिकट दे दिया. इसके साथ ही उनके नई दिल्ली से केजरीवाल के खिलाफ लडऩे की अटकलें खत्म हो गईं. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने शीला दीक्षित के खिलाफ और फिर लोकसभा में बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लडक़र ऐसी रणनीति बनाई थी जिसमें राजा से सीधे राजा टकराए. इस रणनीति में सनसनी और खबर का तत्व तो है लेकिन परंपराएं हमेशा इसके खिलाफ रही हैं. परंपदा तो प्यादे को वजीर से पिटवाने की है. बीजेपी इसी का अनुसरण कर रही है.

चुनावी बिसात की पहली चाल अगर केजरीवाल के पक्ष में गई तो दूसरा दांव बीजेपी ने मारा है. कांग्रेस के अजय माकन बीच-बीच में ट्वीट करके मजा ले रहे हैं, लेकिन पार्टी को वजनदार तरीके से पेश नहीं कर पा रहे हैं. वैसे भी कांग्रेस जब तक 2 लाख की भीड़ जुटाकर दिल्ली में बड़ी रैली नहीं करती तब तक उसके पंजे की लकीरें बदलने वाली नहीं हैं.

ऐसे में अब केजरीवाल फिर से नया पासा फेंक रहे हैं. उन्होंने बेदी को बहस की चुनौती दी है, जिससे बेदी बड़ी सफाई से कन्नी काट गईं. केजरीवाल जल्द ही नई चाल लेकर आते ही होंगे. देखना यह है कि बीजेपी ने उसका सुरक्षाचक्र पहले से ही बना रखा है या हालात को देखकर तुरंत बनाएगी. चुनावी रंगमंच पर अभी कई चौंकाने वाले दृश्य आने वाले हैं, इतना तय जानिए.

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