सौदा बड़ी से बड़ी चीज़ों का हो सकता है. जमीन का, आसमान का, समंदर का और पाताल का भी, लेकिन जब मजबूरियों का सौदा होने लगे, मरहम का सौदा होने लगे और मातम का सौदा होने लगे तो सियासत का चेहरा बहुत स्याह नजर आता है. उत्तराखंड में यही हो रहा है. बेबसी की बुनियाद पर इस सूबे में राहत की राजनीति के नाम पर जिस तरह नेता अपने चेहरे चमकाने पर आमादा हैं वो जनता और जनतंत्र दोनों को बेचारा बना देता है.
बर्बादियों के बेहिसाब टीलों पर बिलखते हुए चेहरे थे. उमड़ती हुई नदियों के किनारे आखों में ख्वाबों के रेगिस्तान. प्रार्थना के मंडपों में मातम के प्रेतों का बसेरा. सियासत के लिए जुल्मतों के दौर बड़े जज़्बाती होते हैं. शुरू हो गई सौदागरी. निकल पड़े सौदागर. बेबसी के बाजार में आंसुओं का मोल लगाने.
दो दिन पहले नरेंद्र मोदी की ओर से ये कहकर दावेदारियों की दुकान चमकाने की कोशिश की गई कि बीजेपी के सरदार इस गर्दिश में भी हेलीकॉप्टर से अपना गुजरात खोजते रहे. बताया गया कि साहब ने अपने 15 हजार लोगों को चुंबकीय शक्ति से बाहर निकाल लिया. इस चमत्कार पर कांग्रेस के चतुरों के चेहरे उतर गए. इसके बाद तो मातम के सौदागरों की लाइन लग गई.
कहते हैं मोदी के जाने से गुस्साए शिंदे को मैडम सोनिया ने खारिज कर दिया. आसमान में दर्द के उड़ते हुए तराजू उसने भी भेजे थे. लोगों को पता लगे कांग्रेस के पास भी रुदालियों की छोटी फौज नहीं है.
हरियाणा वाले हुड्डा गए, महाराष्ट्र वाले चव्हाण गए, अशोक गहलोत गए, शिवराज चव्हाण हो आए थे. इसी बहाने 8 दिन से गायब राहुल गांधी के दर्शन हुए. सोनिया गांधी को देश ने सामने से देखा, लेकिन दर्द चाहे जितना बड़ा हो दिल छोटा निकला. इस मुसीबत में भी झंडी दिखाने का मोह नहीं छूटा मैडम का. सोनिया ने बेटे राहुल संग पूरे तामाझाम के साथ राहत सामग्रियों से लदे ट्रकों को हरी झंडी दिखाई.
दिल्ली से देहरादून तक मातम की सौदागरी जारी थी. जारी था जनतंत्र के मेले में जनता के साथ तमाशा. जमीन पर नर्क बना हुआ था और नेताओं की पलटन हवा में उड़ रही थी. नतीजा 16 हवाई पट्टियों में से सिर्फ 5 ही राहत के काम में इस्तेमाल हो पा रही थी, बाकी नेताओं की उड़ान का इंतजाम देख रही थी. देखो-देखो दर्द की दुकान में सियासत के खरीदार आए हैं.
मातम की ये सौदागरी अभी चलेगी. जब तक दर्द है. दर्द की दरारें है. जब तक लाशें है और जब तक लालच है. सियासत के साहब कब समझेंगे कि वो चोट पर वोट की चालबाजियों से निकल जाते तो हम भी सचमुच के लोकतंत्र हो जाते.