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चुनाव जीतने के लिए हर पार्टी को चाहिए एक प्रशांत किशोर

'अब की बार मोदी सरकार' के नारे ने देश भर में मोदी की हवा बनाई तो 'बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है' ने तय कर दिया कि नीतीश तीसरी बार बिहार की सत्ता संभालने जा रहे हैं. इन दोनों नारों को गढ़ने वाले प्रशांत किशोर ने राजनीति में प्लानिंग और पीआर को शामिल किया. अब कई राजनीतिक दल प्रशांत और उनकी टीम से संपर्क कर रहे हैं.

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नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर
नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर

'अब की बार मोदी सरकार' के नारे ने देश भर में मोदी की हवा बनाई तो 'बिहार में बहार है नीतीशे कुमार है' ने तय कर दिया कि नीतीश तीसरी बार बिहार की सत्ता संभालने जा रहे हैं. इन दोनों नारों को गढ़ने वाले प्रशांत किशोर ने राजनीति में प्लानिंग और पीआर को शामिल किया. अब कई राजनीतिक दल प्रशांत और उनकी टीम से संपर्क कर रहे हैं.

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इन दोनों ही चुनावों में मजबूत नेता के अलावा जो एक खास चीज थी वो थी प्रशांत किशोर की प्लानिंग . लोकसभा चुनावों में मोदी की प्रचार की रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर से बिहार चुनावों के लिए नीतीश ने संपर्क किया. प्रशांत किशोर की रणनीति यहां भी काम आई और नीतीश कुमार की अगुवाई में महागठबंधन ने भारी सफलता दर्ज की. अभी यह तय होना बाकी है कि इन दोनों चुनावों में प्रशांत किशोर की रणनीति का असल किस हद तक है लेकिन राजनीतिक प्रचार का यह नया और प्रोफेशनल प्रयोग एक उधोग बनने की राह में है.

PR का नया ठिकाना राजनीति...
अब संचार और जनसंपर्क के लोग राजनीति में भी जमीन तलाश रहे हैं जो अब तक कारोबार की दुनिया की ओर ही नजर लगाये रहते थे. कई पीआर एजेंसियां राजनीति के क्षेत्र में किस्मत आजमाने पर विचार कर रहीं हैं वहीं कई संचार विशेषज्ञ राजनेताओं के प्रबंधन का जिम्मा संभालने के लिए कमर कस रहे हैं. इस तरह की अटकलें भी हैं कि पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर लोग प्रशांत किशोर और उनकी टीम से संपर्क करने लगे हैं.

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इस तरह की भी खबरें हैं कि किशोर अभी अपनी नयी भूमिका के बारे में तुरंत कोई फैसला नहीं करेंगे. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि बिहार चुनाव में मिली सफलता और उससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में टीम मोदी के साथ उन्हें मिली कामयाबी के बाद उनसे लोग काफी अपेक्षाएं रखेंगे. लगभग सभी बड़े राजनीतिक दल किशोर जैसे रणनीतिकारों की मदद लेना चाहते हैं और आगामी राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए स्वतंत्र एजेंसियों की पूछ बढ़ गई है. पश्चिम बंगाल और असम में अगले साल चुनाव होने हैं और उसके बाद उत्तर प्रदेश में 2017 में चुनाव होने हैं.

राजनीतिक दल भी चाहते हैं प्रोफेशनल मदद
असम चुनावों के लिए एक प्रमुख राजनीतिक मोर्चे ने नई राजनीतिक अभियान प्रबंधन कंपनी ‘ऑकलैंड ब्रिग्स’ को काम सौंपा है वहीं यह कंपनी उत्तर प्रदेश की भी एक प्रमुख पार्टी से बातचीत कर रही है. दावा किया जा रहा है कि इस कंपनी ने स्थानीय जानकारों के साथ कुछ जानेमाने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की भी सेवाएं लेना शुरू किया है और यह दूसरे राज्यों में एक से अधिक राजनीतिक दलों के लिए काम करने को भी तैयार लगती है.

कंपनी के अधिकारियों ने गोपनीयता बरतते हुए उन पार्टियों के नाम नहीं बताये जिनके साथ उनकी बातचीत चल रही है. किशोर और उनकी टीम की सदस्यों से भी इस बाबत तत्काल कोई टिप्पणी नहीं मिल सकी है. तीन मुख्यमंत्रियों और दो केंद्रीय मंत्रियों के लिए काम कर चुके स्वतंत्र जनसंपर्क सलाहकार अनूप शर्मा के मुताबिक राजनीतिक अभियानों के दौरान मतदाताओं की दिलचस्पी बदलती रहती है और राजनीतिक संचार सलाहकार ताजा रुझान को समझने में मदद करता है.

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