हजारों लोग तबाही के चक्रव्यूह में फंसे हैं. सेना और आईटीबीपी के जवान दिन-रात लगे हुए हैं. लेकिन मुद्दों की रोटी सेंकने वाले नेता इतनी बड़ी तबाही को भी अपना मुद्दा बनाने में लगे हैं.
ना जाने सियासत करने वालों को उत्तराखंड में हुई तबाही दिखी या नहीं. ना जाने उनके कानों तक दर्द की आवाज पहुंच पाई या नहीं. ना जाने राजनीति की ये कैसी रीत है कि इतनी बड़ी त्रासदी को भी लोग अपनी रोटी सेंकने का चूल्हा बनाए बैठे हैं.
उत्तराखंड में जमीन पर हुई तबाही को देखने के लिए नेताओं ने सवारी चुनी उड़नखटोला. हवा-हवा में ही भारी तबाही देखी. फिर हवा में ही कुछ-कुछ बोल गए. ऐसी बातें जिनका ना तबाही से कोई लेना-देना और ना लोगों के दुख से कोई मतलब. बीजेपी को लोगों के दर्द से ज्यादा राहुल गांधी की खोज है. मानो राहुल होते तो कोई जादुई छड़ी घुमाकर सब ठीक कर देते. बीजेपी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी का कहना है कि देश में इतनी बड़ी त्रासदी हो गई लेकिन राहुल कहीं नजर नहीं आ रहे.
वहीं केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को हवाई दौरों पर आपत्ति हुई तो जरूर, लेकिन 6 दिन बाद. और वो भी अपने दौरे के बाद. प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी, राजनाथ सिंह, शिंदे और मोदी- सबने एक-एक कर तांडव टूरिज्म किया. पर, किसी के पास इतनी फुर्सत नहीं हुई कि रुककर लोगों का दर्द सुन लेते. सब अपनी तरफ से एलान करने में लगे रहे.
सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता. कांग्रेस इस बात को लेकर भी खफा है कि मोदी की तरफ से मदद की राशि कम आई है. सियासी साहबान के अपने मुद्दे हैं और वो सब उसपर ही फोकस किए हुए हैं.