मंगलवार को जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साउथ ब्लॉक में अपने स्टाफ से विदाई ले रहे थे तो कर्नाटक और गुजरात के राज्यपालों ने कांग्रेस आला कमान से कहा कि वे अपने पद छोड़ना चाहते हैं. यूपीए सरकार के तीसरी बार न आ पाने की संभावना के मद्देनजर उन्होंने यह कदम उठाया है.
कर्नाटक के राज्यपाल हैं पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज और गुजरात की कमला बेनीवाल. इन दोनों के अलावा और भी कई राज्यपाल अपने-अपने पद छोड़ने के इच्छुक हैं. फिलहाल 18 राज्यपाल जिन्हें कांग्रेस ने नियुक्त किया था, आलाकमान के निर्देश का इंतजार कर रहे हैं. इनमें से कई पार्टी के पुराने कार्यकर्ता रहे हैं. केंद्र में सरकार के बदलाव के साथ ही उनमें से कई अपने भविष्य के बारे में चिंतित हो रहे हैं.
भारद्वाज और बेनीवाल का कार्यकाल पूरा हो रहा है. इन दोनों की अपने-अपने मुख्य मंत्रियों से नहीं बनी. इन दोनों से पार्टी आलाकमान ने लोक सभा चुनाव परिणाम आने तक इंतजार करने को कहा है.
आठ राज्यपाल ऐसे हैं जिन्होंने अपने कार्य काल के चार साल पूरे कर लिये हैं और पांचवें साल में जा पहुंचे हैं. ये हैं हरियाणा के राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया, हिमाचल प्रदेश की उर्मिला सिंह, असम के जानकी वल्लभ पटनायक, महाराष्ट्र के के. शंकरनारायण, उत्तर प्रदेश के बीएल जोशी और पंजाब के शिवराज पाटील. तीन राज्यपालों ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष ही पूरा किया है. ये हैं बिहार के राज्यपाल डी वाई पाटिल, नागालैंड के अश्विनी कुमार और उड़ीसा के सी जमीर.
इसी तरह दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अभी हाल ही में पद संभाला है. सिक्किम के राज्यपाल एसडी पाटील को राज्यपाल बने 299 दिन ही हुए हैं. अगर इनसे पद छोड़ने को कहा जाता है तो यह उनके लिए तकलीफदेह होगा.
इस बात की संभावना है कि अश्विनी कुमार जैसी गैर राजनीतिक हस्ती को परेशानी नहीं होगी चाहे किसी भी सरकार आए.
इस बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस का कहना था कि राज्यपालों को बिना कार्यकाल पूरा किए पद छोड़ने के लिए नहीं कहा जा सकता है. राज्यपाल का पद संवैधानिक है और कोई ऐसा कानून नहीं है कि उनसे समय से पूर्व पद छोड़ने को कहा जाए. वे सीधे राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार हैं.
एनडीए के राज्यपालों को हटाया था यूपीए ने
लेकिन, 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता में आई यूपीए सरकार ने बीजेपी तथा आरएसएस से संबंध रखने वाले राज्यपालों को हटा दिया था. कुछ तो तुरंत हटा दिए गए तो कुछ को उनका कार्यकाल पूरा करने दिया गया. जिन राज्यपालों ने तुरंत पद छोड़ा था उनमें केदारनाथ साहनी भी थे जो सिक्किम और गोवा के राज्यपाल थे. उनकी तरह ही कैलाशनाथ मिश्र की भी छुट्टी की गई थी. वो दोनों बीजेपी के नेता थे. संघ के प्रचारक विष्णुकांत शास्त्री को हटा दिया गया था और दिल्ली के पूर्व सीएम मदन लाल खुराना ने खुद ही पद छोड़ दिया था. उसी महीने रमा जोइस ने बिहार के राज्यपाल का पद छोड़ दिया था. वह भी बीजेपी के समर्थक थे. बीजेपी के अन्य नेता बाबू परमानंद को हरियाणा के राज्यपाल के पद से 2004 में हटा दिया गया था.