गांधी का भजन बजता है, वैष्णव जन ते तेने कहिए, पीर पराई जानी रहे. ब्रेक आता है और भारत निर्माण का ऐड शुरू हो जाता है. ब्रेक के बाद की कहानी ये है कि जिस गांधी के ग्राम स्वराज की पोटली उठाने का कांग्रेस दावा करती है, उसके राज में गांव का गरीब सिर्फ 17 रुपये रोजाना पर गुजारा कर रहा है. ये आंकड़े गांधी परिवार की सरपरस्ती में चल रही यूपीए सरकार के हैं. इन्हें जारी किया है नैशनल सैंपल सर्वे ने. शहरों में भी हाल बेहाल है. यहां गरीब 23 रुपये रोजाना पर जिंदगी खर्च कर रहा है.
साल 2011-12 के ये आंकड़े बताते हैं कि कुल जनसंख्या के पांच फीसदी लोग भयानक गरीबी में जी रहे हैं. गांवों में रह रहे ऐसे लोगों की प्रति व्यक्ति आय महीने में 521.44 रुपये है.शहरों में यह आंकड़ा कुछ बढ़कर 700.50 रुपये हो जाता है.
इन आंकड़ों के संदर्भ में कुछ ढाढस बंधाता फिर मुंह चिढ़ाता एक और आंकड़ा है. इसी सर्वे से सामने आया. इसके मुताबिक जनसंख्या की एक और पांच फीसदी लेयर है. टॉप पर टंगी हुई. ग्रामीण इलाकों में ये लोग 4, 481 रुपये प्रति महीने प्रति व्यक्ति कमाते हैं, जबकि शहरों में यह बढ़कर गिनती 10, 282 रुपये पर पहुंच जाती है.
पूरे देश के कुल जमा औसत की बात करें, तो ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति आय 1430 रुपये महीना है, जबकि शहरों में 2630 रुपये. यानी गांव गरीब है और शहर गरीबी में भी गांव के मुकाबले कुछ अमीर. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक शहरी इलाकों में प्रति व्यक्ति औसत आय गांव के मुकाबले 84 फीसदी ज्यादा है.
ये सर्वे सात हजार से भी ज्यादा गांवों और पांच हजार से भी ज्यादा शहरों से सैंपल इकट्ठे कर किया गया है.ये तो हुई कमाई की बात, अब देखते हैं कि इतनी कमाई वाला भारतीय खर्च किन चीजों पर कितना करता है.
प्रतिशत खर्च
53 खाद्य सामग्री
8 बिजली, ईंधन
7 जूते और कपड़े
6.7 स्वास्थ्य
3.5 शिक्षा
4.2 ट्रांसपोर्ट
4.5 घरेलू इस्तेमाल की चीजें
4 ट्रांसपोर्ट के अलावा दूसरी सुविधाएं